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________________ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन - रहस्यवाद २१४ कौन थे ? इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं मिलता है। यही नहीं, इनकी संख्या भी वज्रयानी सिद्धों के समान चौरासी तक पहुंचाई गयी है । लेकिन इतना निश्चित है कि इस सम्प्रदाय में मत्स्येंद्रनाथ, जालन्धरनाथ, गोरक्षनाथ, भरथरी, चौरंगीनाथ आदि का व्यक्तित्व काफी ऊँचा था । डा० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं को बहुत पहले सम्पादित करके 'गोरखबानी' नाम से प्रकाशित कराया था । इसकी भूमिका में उन्होंने गोरखनाथ के अतिरिक्त अन्य नाथ सिद्धों की बानियों को भी प्रकाशित करने की घोषणा की थी । किन्तु असमय में उनकी मृत्यु हो जाने से यह कार्य सम्पन्न न हो सका । आपके पश्चात् इस क्षेत्र में श्री राहुल सांकृत्यायन तथा डा० धर्मवीर भारती ने कुछ कार्य किया । डा० कल्याणी मल्लिक ने 'सिद्ध सिद्धान्त पद्धति ऐण्ड अदर वर्क्स आफ नाथ योगीज़' का सम्पादन करके उसे पूना से सन् १९५४ में प्रकाशित कराया है। इधर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने 'नाथ सिद्धों की वानियाँ' का सम्पादन किया है । यह ग्रन्थ नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से सं० २०१४ विक्रमी में प्रकाशित हुआ है। इसमें २४ नाथ सिद्धों की रचनाएँ संग्रहीत हैं । सम्भवतः यह प्रथम ग्रन्थ है, जिसमें इतने अधिक नाथ सिद्धों की रचनाएँ एक साथ देखने को मिली हैं । 1 नाथों का समय कब से कब तक रहा यह विषय काफी विवाद का है । इनमें से यदि किसी एक के समय का पता चल जाए तो शेष का समय निकालने में आसानी हो सकती है, क्योंकि सभी नाथ सिद्ध एक दूसरे से किसी न किसी प्रकार सम्बद्ध थे । इस सम्प्रदाय के सर्वाधिक महिमा सम्पन्न व्यक्तित्व वाले गोरखनाथ थे । उन्हीं के सम्बन्ध में दन्तकथाओं का ढेर लगा हुआ है । उनके समय को यदि एक ओर दूसरी शताब्दी तक घसीटा गया है तो दूसरी ओर १७वीं शताब्दी तक । डा० शहीदुल्ला ने गोरख को आठवीं शताब्दी का कवि माना है तो राहुल सांकृत्यायन' ने नवीं शताब्दी का, यदि आचार्य द्विवेदी ने उनका समय दसवीं शताब्दी सिद्ध किया है तो शुक्ल जी ने गोरख को पृथ्वीराज का समकालीन माना है। इसी प्रकार किम्वदन्तियों में उन्हें कहीं चारों युगों में अवतरित हुआ बताया गया है तो कहीं १५वीं शताब्दी के कवीर से, कहीं १६वीं शती के नानक से और कहीं १७वीं शताब्दी के जैन कवि बनारसीदास से विवाद करते हुए दिखाया गया है। नाथों के सम्बन्ध में प्रचलित दन्तकथाओं और ऐतिहासिक, अर्ध - ऐतिहासिक तथा पौराणिक लेखों के परीक्षण-निरीक्षण के पश्चात् द्विवेदी जी इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गोरखनाथ विक्रम की दसवीं शताब्दी के आस-पास विद्यमान थे । यदि गोरख का यही समय था, तब 'नाथ युग' का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । १. हिन्दी काव्य धारा, पृ० १५६ । २. नाथ सम्प्रदाय, पृ० ६६ । ३. हिन्दी साहित्य का इतिहास, पृ० १४ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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