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________________ २२ है और जो मरणशील है, वह अविनाशी नहीं । जो अविनाशी नहीं, वह परमात्मा नहीं हो सकता। इसलिये जैन साधक जब राम का नाम लेता है तो इसका तात्पर्य दशरथ पुत्र नहीं, बुद्ध का नाम लेता है तो इसका तात्पर्य शुद्धोदन का पुत्र नहीं, जब शंकर का नाम लेता है तो इसका तात्पर्य कैलाशवासी शिव नहीं। कबीरदास के समान "उनका निरंजन देव वह है जो सेवा से परे है, उनका 'विष्णु' वह है जो संसार रूप में विस्तृत है, उनका राम वह है, जो सनातन तत्व है, गोरख वह है जो भ्यान से गम्य है, महादेव वह है जो मन को जानता है। अनन्त हैं उसके नाम, अपरंपार है उसका स्वरूप ।"" वस्तुतः ब्रह्म और उसका स्वरूप अकथ्य और अवर्ण्य है। भक्त और संतजन अपनी सुविधा के लिए उसको एक कल्पित संज्ञा दे देते हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि जो साधक परमात्मा के जिस रूप का अनुभव कर पाता है उसका वैसा ही वर्णन करने लगता है, किन्तु इससे उसका पूर्ण चित्र उपस्थित हो नहीं पाता। वास्तव में वह अनिर्वचनीय है। संत आनन्दघन इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि जो मेरा ( परमात्मा का) नामकरण कर सके, वह परम महारस का स्वाद प्राप्त कर सकता है । मैं न पुरुष हूं और न स्त्री; न मेरा कोई वर्ण है न जाति; मैं न लघु हूं न भारी; मैं शीतोष्ण भी नहीं हूं; न मैं दीर्घ हूं न छोटा मैं किसी का भाई, भगिनी या पिता-पुत्र भी नहीं हूं; शब्दादि से भी मैं परे हूं मेरा कोई वेष नहीं; मैं किसी कार्य का कर्ता भी नहीं; मैं रस, गंध विहीन हूं, अतएव 'दरसन - परसन' का भी कोई प्रश्न नहीं उठता। मेरा स्वरूप है चेतनमय : षष्ठ अध्याय हमारी । सोई परम महारस चाखै । ना हम पुरुष नहीं हम नारी, वरन न भाँति जाति न पाँति न साधन साधक, ना हम लघु नहीं भारी ॥ ना हम ताते ना हम सीरे, ना हम दीर्घ न छोटा । ना हम भाई ना हम भगिनी ना हम बाप न धोटा ॥ ना हम मनसा ना हम सबदा, ना हम तन की धरणी। ना हम भेख भेखघर नाहीं, ना हम करता ना हम दरसन ना हम परसन, रस न गन्ध कछु नाहीं । आनन्दघन चेतनमय मरति, करणी ॥ अवध नाम हमारा राखे सेवक जन यांत जाहीं ॥ २६ ॥ १. आचार्य हजारी प्रसादविवेकबीर १६६ ( आनन्दघन बहोत्तरी, पृ० ३६६ )
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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