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________________ तृतीय अध्याय परवर्ती दिनों की दुर्दशा नहीं देखा था। अन्तिम दिनों में उनके साम्राज्य में अराजकता फल गई थी और मं में नादिनमाह के आक्रमण से तो मुगल साम्राज्य की नींव हो हिल गई थी। 'धर्म'विलास ग्रन्थ में मापनेनं: - नत्र का जीवन चरित संक्षेप में लिखा है। वह एक प्रकार के प्रात्मचन्ति' का कार्य करता है। सं. १७८० के बाद वह कब तक जीवित रहे. या अपने मागम बिलान' नामक दुसरे ग्रन्थ ने स्पष्ट हो जाता है। इसमें विभिन्न विषयों पर निजी गई फुटकल रचनाओं को संग्रहीत किया गया है। यह संग्रह मंबन १३८८ में माघ सुदी चवह को मैनपुरी में पं० जगतराय द्वारा बानतरायनी मन्यु के पश्चात किया गया था। इस संग्रह में द्यानतराय की मृत्यु तिथि मं०१३ को कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी दी 'संवत विक्रम नृपत के गुण वसु सेल सितर्श । कातिक सुकल चतुरदसी द्यानत सुरग तुस । नागरी प्रचारिणी सभा की खोज रिपोर्ट । १९६३-६४) में द्यानतराय की पाँच रचनाओं का विवरण दिया गया है। इनमें 'बावन अक्षरी छैहाल्यो' नामक पुस्तक का रचनाकाल सं० १७९८ वि० दिया हुआ है : १. द्रानतराय-धर्मबिलास (हाना वन)-प्र जैन ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई प्रथम फरवरी, १९१४. अन नाम तपस तिसम अगरोह भया, तिम की सन्तान सत्र अग्रवाल गाए है। ठार मुत भए तिन, ठारै गोत नाम हिए, तहाँ सो निकसि के हिसार माहि छाए हैं । फिर लालपुर आय व्यक 'चौकसी कहाय, ताही के सपूत स्यामदास के द्यानतराय, देमपुर गाम सारे साहसी कहाए हैं ॥३६॥ (पृ०२५७) सत्रहसय तैतीस जन्म व्याले पिता मर्न, अठताले व्याह सात सुत सुता तीन जी । छयाले मिले सुगुरू बिहारीदास मानसिंध, तिनी जैन मारग का सरधानी कीन जो ॥ पछत्तर माता मेरी सील बुद्धि ठीक करी, सतत्तरि सिखर समेद देह कीन जी। कछु अागरे मै कह दिल्ली माहि जोर करी, अस्सी मांहि पोथी पूरी कीनी परवीन जी ॥३८॥ (पृ०२५८) ३. देखिए-वारकामी वर्ष २, अंक १९-२० (१८ जनवरी १६४६ ) में श्री अगरचन्द नाहटा का लेख, कवि द्यानतराय और उनके ग्रंथ, पृ० २५४ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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