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________________ (#) ( खण्ड ३ ) चतुर्थ अध्याय-मूल्यांकन की दो दृष्टियाँ-व्यवहार- नय और निश्चय-नय १२०-१३८ नय-द्वय व्यवहार-नय निश्चय - नय या परमार्थ- नय व्यवहार-नय की सीमाएँ नय-द्वय का प्रयोजन जैनेतर साहित्य में समान दृष्टि-द्वय पंचम अध्याय-द्रव्य व्यवस्था द्रव्य का तात्पर्य द्रव्य-भेद जीव पुद्गल द्रव्य धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य आकाश द्रव्य काल द्रव्य जैन कवियों द्वारा आत्मा का स्वरूप-कथन आत्मा का स्वरूप आत्मा और शरीर में अंतर आत्मा की अवस्थाएँ जैनेतर सम्प्रदायों में आत्मा की अवस्थाओं का वर्णन आत्मा ही परमात्मा आत्मा और कर्म आस्रव-संवर- निर्जरा मोक्ष परमात्मा का वास शरीर में एक ब्रह्म के अनेक नाम ब्रह्मानुभूति जनित मानन्द तम अध्याय -मोक्ष अथवा परमात्म-पद प्राप्ति के साधन सांसारिक पदार्थों की क्षणिकता का ज्ञान विषय पंचेन्द्रिय नियन्त्रण सुख का त्याग मन बाह्य अनुष्ठान पुस्तकीय ज्ञान पुण्य-पाप १३० १३१ १३१ - १३३: १३५ १३६ १३६-१४६ १३९ १२. १४१ १४२ १४३ १४४ १४४ १४७-१७१ १४७ १५० १५२ १५५ १५८ १५९ १६१ १६२ १६५ १६७ १७१ १७२-२६८ १७२ १७५ १७५ १७६ १७९ १८४ १८६
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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