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________________ तृतीय अध्याय भाषा पर राजस्थानी का प्रभाव अधिक है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति बर्द्धमान ज्ञान मन्दिर, उदयपुर में सुरक्षित है।' बर्द्धमान ज्ञान मन्दिर, उदयपुर में प्रापका एक गीत संग्रह भी सुरक्षित है। इसमें २६४ पद हैं। खोजकर्ता ने इसका रचनाकाल मं०१७ बताया है. जो गलत प्रतीत होता है, क्योंकि यगोविजय का सं.१७४५ में हो स्वर्गवास हो गया था। 'समतागतक' आपकी पांचवी रचना है। इसमें १०५ छन्द है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर में सुरक्षित है। अन्तिम दोहे इस प्रकार हैं :-- वहुत ग्रन्थ नय देखि के. महापुरुष कृत सार । विजय सिंह सृरि कियो, समतामत को हार ॥१॥ भावन जाकू तत्व मन, हो समता रस लीन ! ज्यु प्रगटे तुझ सहज सुख, अनुभव गम्य अहीन ॥१०॥ कवि यशविजय मु सीखए, आप आपकू देत । साम्य शतक उद्धार करि, हम विजय मुनि हेत ।।१०।। आपकी छठी रचना 'दिगपट खण्डन है। इनमें साम्प्रदायिकता की गन्ध अधिक है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में सुरक्षित है। (१५) भैया भगवनीदाम परिचय: अठारहवीं शताब्दी के जैन रहस्यवादी कवियों में भया भगवनीदाम का नाम प्रमुख है। आपकी छोटी बड़ी ६७ रचना-जिनमें एक (द्रव्य संग्रह-ले० नेमिनाथ) अनदित और शेष मौलिक हैं-ब्रह्मविलाम' नामक ग्रन्थ में संग्रहीत हैं। यह ग्रन्थ सर्व प्रथम वीर निर्वाग सम्वत् २४३० (मन् १६०३) में जैन ग्रन्थ रत्नाकर (मुम्बई) से प्रकाशित हुप्रा था, वहीं से तेइस वर्ष पश्चात् इमका दूसरा संस्करण निकला । इस ग्रन्थ के अन्त में आपने अपना संक्षिप्त परिचय दिया है, जिसके अनुसार आप अागरा के रहनेवाले कटारिया गोत्र के ओसवाल जैनी थे। आप दशरथ साह के पौत्र और लाल जी के पुत्र थे। अन्तःनाश्म के आधार पर १. उदयसिंह भटनागर -राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (तृतीय भाग पृ०४ । २. गजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (तृतीय भाग) पृ०१२। अगरचन्द नाहटा-राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (चतुर्थ भाग) पृ०८१। ४. अगरचन्द्र नाहटा-राजस्थान में हिन्दी के हस्तलिखित ग्रन्थों की खोज (चतुर्थ भाग) ५० १३६ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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