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________________ ८६ अपभ्रंश और हिन्दी में जैन-रहस्यवाद ही साथ गद्य लेखक भी थे। आपकी दो रचनाएँ-परमार्थ वचनिका' और उपादान निमित्त को चिट्ठी ब्रजभाषा गद्य में लिखी हुई मिलती है। इस प्रकार वनारसीदास का व्यक्तित्व महान् और प्रतिभा सर्वतोमुखी थी। खेद है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास में आप जिस महत्वपूर्ण स्थान के अधिकारी हैं, वह अभी तक आपको प्राप्त नहीं हो सका है। (१०) भगवतीदास भगवतीदास नामक कई कवि : जैन साहित्य में 'भगवतीदास' नामक कवि की अनेक रचनाएं मिलती हैं। इन रचनाओं के रचनाकाल में भी काफी अन्तर है। कुछ रचनाएँ १७ वीं शताब्दी की हैं और कुछ १८ वीं शताब्दी की। प्रारम्भ में कुछ विद्वान् एक ही 'भगवतीदास' का अस्तित्व स्वीकार करने के पक्ष में थे। लेकिन अब प्रायः यह निश्चित हो गया है कि 'भगवतीदास' नाम के कवियों की संख्या एक से अधिक रही है। एक 'भगवतीदास' बनारसीदास के समकालीन और उनके अभिन्न मित्र थे। इनका उल्लेख बनारसीदास ने अपने 'नाटक समयसार' में पांच प्रधान पुरुषों के रूप में किया है। दूसरे भगवतीदास १८वीं शताब्दी में हुए, जो 'भया' नाम से काव्य रचना करते थे। 'ब्रह्म विलास' इनकी प्रसिद्ध रचना है। इनका विस्तृत विवरण आगे दिया जा रहा है। पं० परमानन्द शास्त्री ने 'भगवतीदास' नामक चार विद्वानों की कल्पना की है। आपके मत से प्रथम 'भगवतीदास' पाण्डे जिनदास के शिष्य थे, दूसरे वनारसीदास के मित्र थे, तीसरे अम्बाला के निवासी और प्रसिद्ध कवि तथा अनेक ग्रन्थों के रचयिता थे और चौथे भैया भगवतीदास १८वीं शताब्दी के कवि थे। शास्त्री जी १. बनारसी विलास पृ० २०७ से २१५ । २. , , , पृ०२१५ से २२१ । नगर आगग मांहि विख्याता, कारन पाइ भये बहु ग्याता ! पंच पुरुष श्रत निपुन प्रवीने, निशिदिन ज्ञान कथा रस भीने ॥ १०॥ रूपचन्द पण्डित प्रथम, दुतिय चतुर्भुज नाम । तृनय भगौतीदास नर. कोरसाल गुनधाम ॥ ११ ॥ धर्मद स ए पंच जन, मिलि वेसें इक ठौर । परमारथ चरचा करें, इनके कथा न और ॥ १२ ॥ ४. देखिए-अनेकान्त वर्ष ७, किरण ४-५, (दिसम्बर-जनवरी १६४४-४५) पृ०५३ से ५६ ।
SR No.010154
Book TitleApbhramsa aur Hindia me Jain Rahasyavada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasudev Sinh
PublisherSamkalin Prakashan Varanasi
Publication Year
Total Pages329
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size60 MB
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