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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 45 किये जा रहे हैं। राजा सिद्धार्थ राजकुमार का जन्मोत्सव मनाने के लिए अखाड़ेसार्वजनिक स्थान पर बहुमूल्य वस्त्राभरणों से अलंकृत, अनेक वाद्यों की ध्वनियों से गुंजायमान विशाल जन-समूह सहित पहुंचते हैं। दस दिवस पर्यन्त वहां उत्सव चलता रहता है। दस दिनों में सभी का ऋण माफ कर स्वयं राजा कर्ज चुकाते हैं। जनता को सभी वस्तुओं को बिना पैसे आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराते हैं। उत्तम गणिकाओं द्वारा नृत्यादि का आयोजन करते हैं। दस दिन तक दिव्य दान देकर और कुमार के जन्मोत्सव पर आये लाखों उपहारों को ग्रहण कर नृपति बड़ी धूमधाम से जन्म-महोत्सव मनाते हैं। इसके साथ ही कुल–परम्परानुसार प्रथम दिन जन्म-निमित्त करने योग्य अनुष्ठान करते हैं। तृतीय दिन सूर्यचन्द्र का दर्शन करवाते हैं। छठे दिन रात्रि जागरण-उत्सव करते हैं। ग्यारहवें दिन सर्व अशुचि निवारण करते हैं। बारहवें दिन विपुल मात्रा में अशन, पान, खादिम, स्वादिम पदार्थों को तैयार करवाते हैं। अपने मित्रों, ज्ञातिजनों, स्वजन-सम्बन्धियों एवं ज्ञातवंश के क्षत्रियों को भोजन के लिए आमन्त्रित करते हैं। स्वयं सिद्धार्थ वस्त्राभरणों से सुसज्जित होकर भोजन-मण्डप में आते हैं। स्वयं खाद्य सामग्री का आस्वादन करते हुए दूसरों को भोजन करवाते हुए सभी समागत अतिथियों का वस्त्र, पुष्प, माला, आभूषणों से स्वागत्-सत्कार करते हैं। तत्पश्चात् सभी मित्रों यावत् ज्ञातवंशीय क्षत्रियों के सम्मुख नामकरण करते हुए कहते हैं कि जब से हमारा यह कुमार गर्भ में आया तभी से हिरण्य, सुवर्ण, धन-धान्य, सत्कार-सम्मान आदि सभी की वृद्धि होने लगी है इसलिए इसका गुण-निष्पन्न नाम वर्धमान रखते हैं।' सभी उपस्थित समूह बड़े हर्षित होते हुए अपने-अपने स्थानों की ओर लौट जाते हैं। राजा सिद्धार्थ राजभवन की ओर प्रस्थान करते हैं। संदर्भः सिद्धार्थ द्वारा जन्माभिषेक अध्याय 7 1. (क) आवश्यक सूत्र; मलयगिरि वृत्ति; वही; पृ. 257
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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