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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 44 सिद्धार्थ द्वारा जन्माभिषेक – सप्तम अध्याय राजमहल में बैठे राजा सिद्धार्थ अत्यन्त हर्षित होकर चिन्तन की गहराइयों में निमग्न हैं। आज मैं सौभाग्यशाली तृतीय सन्तान का पिता बन गया हूं। जब से यह बालक गर्भ में आया, चहुं ओर वृद्धि ही वृद्धि। बड़ा पुण्यप्रतापी है। प्रातःकाल होने पर बड़ी धूमधाम से जन्म-महोत्सव मनाऊंगा। अब पूरा क्षत्रियकुण्ड आनन्द की लहरों में निमग्न बनेगा। महारानी त्रिशला ...... वह तो भाग्यशालिनी माता है जिसने ऐसे दिव्यतम बालक को जन्म देकर तीनों लोकों को आलोकित कर दिया है। राजा सिद्धार्थ कल्पनाओं के मधुर लोक में विहरण कर रहे थे। कल्पनाओं का जाल टूटा। सहसा चौंककर- अरे! ऊषा ने लालिमा से संसार को अरुणिम बना दिया है। अरे सेवक! जाओ कोतवाल को बुलाओ। जो आज्ञा, कहकर प्रस्थान करता है। कोतवाल आकर -- महाराज की जय हो। अरे कोतवालजी! फरमाइये स्वामिन! देवानुप्रिय! आज क्षत्रियकुण्ड में खुशियों का वातावरण निर्मित करना है। जाओ बन्दियों को कारागार से मुक्त करो। बाजार में सभी वस्तुएं सस्ते भाव में उपलब्ध कराओ, व्यापारियों को सस्ता बेचने पर जो घाटा होगा, हम उसकी क्षतिपूर्ति करेंगे। नगर को साफ, स्वच्छ, परिमार्जित बनाओ। स्थान-स्थान पर पुष्पों की मालाएं लगाकर नगर को नव-वधू की तरह सुसज्जित करो, चन्दन आदि सुगंधित पदाथों के थापे लगाओ, सुगन्ध–वट्टी की तरह नगर को सुगन्धित बनाओ, नृत्य, वादन, गायन, वाद्य तंत्र, वीणादि बजाने वालों को कहो कि स्थान-स्थान पर वे अपना नव्य-भव्य कार्यक्रम प्रस्तुत करेंगे। जो आज्ञा कहकर चला जाता है। चंद समय में सभी कार्य पूर्ण करता है। सारा क्षत्रियकुण्ड आनन्द-पारावार में निमग्न है। जगह-जगह विभिन्न कार्यक्रम आयोजित
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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