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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर 217 दौड़ रहा है। देवता कहते ही रहे लेकिन चमर तो दौड़ ही रहा है। आगे-आगे चमर दौड़ रहा है और पीछे-पीछे वज्र दौड़ रहा है । वज्र को छोड़ने के पश्चात् शक्रेन्द्र ने चिन्तन किया कि आज तक कोई असुर यहां तक नहीं आ पाया, किसी भी असुर की शक्ति नहीं इस देवलोक में आने की तब चमरेन्द्र यहां कैसे आया? क्या कोई अरिहंत या उनके साधु-साध्वी की शरण ली है? इस प्रकार अवधिज्ञान का उपयोग लगाकर शक्रेन्द्र ने देखा तब अवधिज्ञान से जाना कि प्रभु वीर की शरण लेकर चमरेन्द्र यहां आया और पुनः भगवान महावीर की शरण में ही लौटा है तब वे ससंभ्रम बोल उठे अरे अनर्थ हो गया । मैं मारा गया। अरे! अब क्या करूं? इस प्रकार बोलते हुए इन्द्र के हारादि टूट गये और वह व्याकुल होकर वज्र के पीछे बड़े वेग से दौड़ा। आगे-आगे चमर, बीच में वज्र और पीछे शक्रेन्द्र, तीनों अपनी-अपनी शक्ति से दौड़ रहे हैं । वज्र चमरेन्द्र के नजदीक आ रहा है, चमर इतना तेज दौड़ते हुए भी वज्र से अब ज्यादा दूर नहीं रहा । वज्र एकदम नजदीक आ गया इतने में चमरेन्द्र प्रभु के समीप पहुंच गया और शरण दीजिए, शरण दीजिए इस प्रकार बोलता हुआ कुंथुए जितना रूप बनाकर भगवान के चरणों के नीचे छुप गया। उस समय वज्र प्रभु से मात्र चार अंगुल दूर रहा। इतने में शक्रेन्द्र आ पहुंचा और उन्होंने वज्र को पकड़ लिया। राहत पाकर शक्रेन्द्र तीन बार प्रभु की प्रदक्षिणा कर वन्दन-नमस्कार करते हैं और अत्यन्त विनम्र भाव से निवेदन करते हैं- भगवन्! चमरेन्द्र आपश्रीजी की शरण लेकर मेरे देवलोक में आया और मुझे बहुत-कुछ बोला तब मैंने इसको परास्त करने के लिए वज फेंका। पहले मुझे ज्ञात नहीं हो सका कि यह आपश्रीजी की शरण लेकर आया है लेकिन जब ज्ञात हुआ तो मैं आपश्रीजी की सेवा में उपस्थित हो गया हूं। वज्र फेंकने से जो अविनय अशातना हुई है उसके लिए मैं बारम्बार क्षमाप्रार्थी हूं। आप मेरे अपराध को अवश्यमेव क्षमा करेंगे। इस प्रकार कहकर शक्रेन्द्र ईशानकोण में गये । अपना रोष शांत करने के लिए बायें पैर को तीन बार भूमि पर पटका और चमरेन्द्र से कहा- चमर ! तूं अभयदाता प्रभु वीर की शरण लेकर देवलोक में आया है। भगवान तो त्रैलोक्य गुरु हैं। वे शरणदाता होने के कारण मैं
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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