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________________ अपरिमितीकर महातीर - 176 साथ विरोध था इसलिए राज्य कर्मचारी बड़ी सतर्कता से आने-जाने वालों का खयाल रखते थे। जब उन कर्मचारियों ने भगवान सहित गोशालक को आते हुए देखा तो पूछा- आप कौन? भगवान् के गौन था। उन्होंने कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया। गोशालक भी गौन धारण किये रहा। तब उन्होंने शत्रु राजा के हितैषी समझकर प्रभु एवं गोशालक को बांध दिया और राजा को लाकर सौंप दिया। उसी समय उत्पल नैमित्तिक, जो पहले प्रभु पार्श्वनाथ का शिष्य था, वह वहां आया हुआ था। उसने भगवान को पहचान लिया। प्रभु को देखते ही उसने वन्दना की और सब बात जितशत्रु से कही। तव राजा ने प्रभु और गोशालक को बन्धनमुक्त करके क्षमायाचना करते हुए भक्ति से वन्दन किया । वहां से भगवान् पुरिमताल पधारे। वहां वागुर नामक एक धनाढ्य सेठ रहता था। उसकी भद्रा नामक स्त्री थी। वह वंध्या थी। उसने देवों की बहुत समर्चा की लेकिन सन्तानरत्न की प्राप्ति नहीं हुई। एक बार वे दोनों शकटमुख उद्यान में गये। वहां उन्होंने पुष्प चूंटने आदि की देवों जैसी क्रीड़ाएं कीं। क्रीड़ाएं करते-करते वे एक जीर्ण मन्दिर के पास आये । आकर दोनों ने उस मन्दिर में प्रवेश किया। वहां जो प्रतिमा बनी हुई थी। उसके सामने दोनों ने प्रार्थना की कि यदि आपके प्रभाव से हमारे सन्तान हो जायेगी तो इस जीर्ण मन्दिर का उद्धार करवा देंगे और सदा आपके भक्त बने रहेंगे। ऐसा कहकर घर आये। वहां उस मन्दिर के समीप कोई व्यन्तर देव रहता था। उसने इन वाक्यों को सुना और ऐसा कार्य किया कि भद्रा के गर्भ रह गया जिससे वह सेठ हर्षित हुआ और मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाने लगा और समय-समय पर उस प्रतिमा की पूजा करने लगा। उस सेठ को जिनभक्त जानकर साधु-साध्वी भी उसके घर आने लगे। साधुओं की संगत से श्रेष्ठ बुद्धि वाले उस सेठ ने श्रावक के बारह व्रत अंगीकार कर लिये। जब भगवान पुरिमताल पधारे तो वे शकटमुख उद्यान में ध्यानस्थ बनकर खड़े रहे। वहां ईशानेन्द्र जिनेश्वर देव को वन्दन करने आये और सेठ मंदिर की पूजा करने जा रहा था तब ईशानेन्द्र ने कहाअरे सेठ! इन प्रत्यक्ष जिनेश्वर का उल्लंघन करके अन्य के बिम्ब को पूजने कहां जा रहा है? भगवान महावीर चरम तीर्थंकर हैं। वे छद्मस्थ
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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