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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर – 167 साधनाकाल का षष्टम वर्ष - षोडश अध्याय पंचम चातुर्मास भद्दिलपुर नगर में सम्पन्न कर प्रभु महावीर कदलीग्राम के समीप पधारे । वहां लोग याचकों को अन्न दे रहे थे। यह देखकर गोशालक ने भगवान से कहा- यहां याचकों को अन्न मिल रहा है, चलो अपन भी लेने के लिए चलते हैं। तब सिद्धार्थ ने कहाआज उपवास है। गोशालक वहां खाने चला गया। उसे अन्न दिया लेकिन उसकी भूख शांत नहीं हुई, तब एक अन्न से परिपूर्ण थाल उसके सामने रखा। गोशालक उसे खाने लगा। खाते-खाते इतना तृप्त हो गया कि एक कौर भी और लेने की गुंजाइश नहीं थी। पानी भी नहीं पीया जा रहा था। थाल में अभी भोजन बहुत बच गया। तब लोगों ने गोशालक से कहा- अरे, तुझे इतना भी पता नहीं कि तेरे पेट में कितना आता है? इतना भोजन अभी बचा दिया। इतना कहकर थाल उसके सिर पर फेंक दिया। फिर वह अपने पेट पर हाथ फेरता-फेरता अपने स्थान पर आ गया। प्रभु वहां से विहार करके जम्बू खण्ड नामक गांव में पधारे। गोशालक सदाव्रत का भोजन प्राप्त करने की इच्छा से गांव में गया। वहां भोजन के साथ-साथ उसे तिरस्कार भी मिला' । प्रभु वहां से विहार कर तुम्बाक नामक गांव के पास पधारे। ग्राम के बाहर प्रतिमा धारण कर प्रभु कायोत्सर्ग में स्थित हो गये। गोशालक ने गांव में प्रवेश किया। उस ग्राम में भगवान पार्श्वनाथ के शिष्य आचार्यश्री नन्दिषेण अपने बहुशिष्य परिवार सहित पधारे। वे आचार्य गच्छ का भार दूसरों को देकर जिनकल्प धारण करने की इच्छा से प्रतिकर्म में निरत थे। उनको देखकर गोशालक ने उनकी हंसी उडाई और वे चुप रहे तो गोशालक प्रभु के पास आ गया। इधर रात्रि में नन्दिपेण मुनि ग्राम के किसी चौक में ध्यान करने के लिए कायोत्सर्ग करके स्तन्म की तरह स्थिर हो गये। अर्धरात्रि में गांद की देखभाल करने चौकीदार निकला! मुनि को देखकर चोर समडावर बाई प्रश्न किये. उत्तर न देने पर उन्हें मार दिया। टे समनाद से माप पा कर देवलोक पधारे ! दहां उन्हें अवधिज्ञान दा हुआ।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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