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________________ तीर्थंकर महावीर 139 खरेख कौन करेगा? इसलिए अच्छा यही है कि इनकी देखरेख में ही करूं। इस प्रकार नन्हे-मुन्ने वृषभों पर अनुकम्पा करके वह जिनदास प्रासु घास और पानी से उनका पालन-पोषण करने लगा। जब अष्टगी, चतुर्दशी आती तो सेठ तो उपवास करके पौषध व्रत लेता और बैल भी धर्म की वाणी सुनें एतदर्थ पौषध में उन धार्मिक पुस्तकों का वाचन करता था । इस प्रकार धर्म श्रवण करते-करते उन बैलों के शुभ परिणाम उत्पन्न हो गये। अब तो वे इतने धार्मिक हो गये कि जिस दिन सेठ उपवास करता, उस दिन वे बछडे भी उपवास करते। उनके मुख के सामने घास पडी रहती तो भी उसे ग्रहण नहीं करते। तब सेठ ने सोचा, अहो ! ये बछडे भी त्यागी बन गये हैं। इतने दिन तक तो मैं इन पर दया करके उनका पालन करता था लेकिन अब ये मेरे स्वधर्मी बन गये है अत: इनका पूर्णतया ध्यान रखना है। यह चिन्तन कर वह संत प्रतिदिन उनका विशेष बहुमान करने लगा। सेठ के यहां वे बछडे निरन्तर पोषित होने लगे।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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