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________________ अपश्चिम तीर्थंकर महावीर - 138 पुत्री थी। दोनों ने परिग्रह की मर्यादा करली थी और गायादि पशु रखने के भी प्रत्याख्यान कर लिये थे। वे दोनों अहीरिनों से दूध, दही लेते थे। एक बार एक अहीरिन उत्तम दही बेचने के लिए वहां आई। साधुदासी ने उससे दही खरीदा और कहा कि, "तेरे घर पर जितना दही-दूध होता है उसको यहां हमको दे दिया कर और जितना चाहे उतना मूल्य ले लिया कर।" तबसे वह अहीरिन हमेशा उसे दूध-दही बेचा करती थी। स्त्रियां एक बार सम्पर्क से अपनत्व का बीज बो देती हैं। साधुदासी और अहीरिन के एक बार सम्पर्क से दोनों में मित्रता हो गयी। निरन्तर सम्पर्क से अग्रजा-अनुजा जैसा प्रेम स्थापित हो गया। एक बार उस अहीरिन के घर विवाह का प्रसंग उपस्थित हुआ तब उसने सेठ जिनदास और सेठानी को विवाह में आने का निमन्त्रण दिया। लेकिन सेठानी ने कहा, "हम वणिक लोग तुम्हारे विवाह-प्रसंग पर तो उपस्थित नहीं हो सकते क्योंकि अहीर जाति के यहां पर हम खाना खाने नहीं जाते लेकिन तुम्हारे विवाह में काम आने योग्य सारी वस्तुएं, वस्त्र, अलंकार, धान्य आदि मैं दे देती हूं जिससे तुम्हारा कार्य ठीक हो जायेगा । यह कहकर उस सेठानी ने विवाहयोग्य सारा सामान दिया। वह ग्वालिन उस सामान को पाकर बहुत प्रसन्न होती है और विवाहकार्य अच्छी तरह सम्पन्न हो जाता है। सारे ग्वाले उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। तब वह अहीरिन और उसका पति सोचता है कि सेठ-सेठानी को हमारी ओर से कुछ पुरस्कार देना चाहिए। लेकिन क्या दें? हमारे पास ज्यादा कुछ नहीं है। बस, तीन वर्ष के कम्बल और सम्बल नामक दो बछड़े हैं। वे श्वेतवर्ण वाले बड़े ही सुन्दर हैं, उन्हीं को देना चाहिए। यही विचार कर वे दोनों कम्बल और सम्बल को लेकर सेठ के घर जाते हैं और उनसे कहते हैं, "ये दो खूबसूरत बछड़े आपके लिए हम लाये हैं।" सेठ-सेठानी दोनों ने मना कर दिया लेकिन वे अहीर-अहीरिन नहीं माने और जबरदस्ती उनके यहां बांट कर चल दिये। जिनदास श्रेष्टि धर्मसंकट में पड़ गया कि क्या करूं? यदि इन वछड़ों को खुला छोड़ता हूं तो कोई इनको अपने हल में जोतकर बहुत दुःखी कर सकता है और यदि इन्हें पालन करूं तो मेरे बिना इनकी
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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