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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर - 130 जानता हूं, पर अब नहीं कहूंगा।" तब लोगों ने सिद्धार्थ से कहने के लिए अत्यधिक आग्रह किया। सिद्धार्थ ने कहा, "मैं तो नहीं कहूंगा। तुम लोगों को जानना है तो उसकी स्त्री से पूछो।" तब लोग यह जानने के लिए उस अच्छंदक के घर की तरफ रवाना हुए। उसी दिन अच्छंदक ने अपनी स्त्री को बहुत पीटा। तब उसे गुस्सा आया और नेत्रों से अश्रु बरसाते हुए चिन्तन किया कि मेरा पति दुष्ट है तभी तिनके से इनकी अंगुलियां छिद गईं। पूरे गांव में इनका तिरस्कार हो रहा है। अब लोग मेरे पास पूछने के लिए आयेंगे तो मैं इनका दुष्चरित्र कह डालूंगी। इधर लोग अच्छंदक के घर पहुंचे और उसके दुष्चरित्र के बारे में पूछा, तो सकोप पत्नी ने बताया कि यह दुष्ट है। कर्म से चंडाल है। अपनी बहिन के साथ विषय-सुख भोगता है और कभी मेरी ओर देखता भी नहीं है। यह श्रवण कर जनता अच्छंदक को "पापी! पापी! धिक्कार है! धिक्कार है!" करती हुई लौट गयी। अब अच्छंदक के पापों का भण्डाफोड़ हो गया है। उसके लिए आजीविका चलाना दुष्कर हो गया। जिस भी घर में भिक्षा के लिए जाता, लोग उसे धिक्कार-धिक्कार कहते और बोलते, "दुष्ट हट जा, तेरा मुंह देखना भी पाप है।" ऐसा कहकर निकाल देते और उसे कुछ भी भिक्षा नहीं देते। तब अच्छंदक ने देखा कि उस संन्यासी के आने से मेरा जीवन बरबाद हो रहा है। उसके रहते हुए मुझे भिक्षा नहीं मिल सकती। अत: उसको यहां से हटाने का प्रयास करना चाहिए। यह सोचकर अच्छंदक एक बार एकान्त में वीर प्रभु के पास गया और नम्र निवेदना की, "हे भगवन्! आप यहां से अन्यत्र पधारो क्योंकि आप तो पूज्य हैं। अतः आप तो अन्यत्र भी पूजे जायेंगे लेकिन मैं तो यहीं के लोगों को जानता ह। अन्य जगह तो कोई मेरा नाम भी नहीं जानते । शृगाल का शौर्य तो गुफा में ही है, उसके वाहर नहीं। मैंने आपका अविनय किया, उसका फल ही मुझे प्राप्त हुआ है। अव आप मेरे पर कृपा करके दूसरे स्थान पर पधारो ताकि पुनः मैं अपनी आजीविका जुटा सळू।" अच्छंदक के इन वचनों को सुनकर, मुझे अप्रीतिकर स्थानों में नहीं ठहरना, इस अपने अभिग्रह के अनुसार प्रभु ने वहां से उत्तर वाचाला नाम के सन्निवेश की तरफ विहार कर दिया।
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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