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________________ अपश्चिम तीर्थकर महावीर की तरह वहां से चला गया। अच्छंदक लौट गया है। ग्रामवासी सिद्धार्थ के अतिशय से चमत्कृत हैं। वे सिद्धार्थ से अच्छंदक के बारे में और भी कुछ जानना चाहते हैं और पूछते हैं- "देवार्य अच्छंदक झूठ तो बोलता ही है, क्या और भी कोई बुरी आदत है?" तव सिद्धार्थ ने कहा- "ग्रामवासियों! यह अच्छंदक चोर भी है।" तब लोगों ने पूछा, "इसने किसके यहां कव चोरी की?" तव सिद्धार्थ ने कहा, "आपके गांव में वीरघोष नामक सेवक है।" उसी समय वीरघोष खड़ा हो गया और बोला, "मैं वीरघोष हूं।" कहिए आप क्या कहना चाहते हैं?" तब सिद्धार्थ ने कहा, "पहले दशपल' प्रमाण वाला एक वर्तन तेरे घर से चोरी हुआ था?" वीरघोष ने कहा, "हां।" तव सिद्धार्थ ने कहा, "वह वर्तन अच्छंदक ने चोरी किया है। उसने तुम्हारे घर से पीछे पूर्व दिशा में सरगवन का वृक्ष है, उसके नीचे एक हाथ खोदकर छिपाया है। वह वहीं पर है ।" यह सुनकर सभी आश्चर्यचकित होते हुए बोले- "चलो वीरघोष, तुम्हारा बर्तन लेने के लिए चलते हैं।" तब वीरघोष ग्राम्य जनता सहित वहां गया, जगह खोदी। वहां उसका पात्र मिला, घर लाया और लोग कोलाहल करते पुनः सिद्धार्थ के पास आये और कहा, "देवार्य, तुम्हारा कथन अक्षरशः सत्य है। क्या तुम अच्छंदक के बारे में और भी कुछ जानते हो?" तब सिद्धार्थ ने कहा, "और सुनो। तुम्हारे गांव में इन्द्रशर्मा नामक ब्राह्मण है?" तब लोगों ने कहा, "हां है।" सिद्धार्थ ने कहा, "उसे यहां बुलाओ।" लोगों ने इन्द्रशर्मा को बुलाया । इन्द्रशर्मा उपस्थित हुआ। पूछा, "भन्ते ! क्या आज्ञा है?" सिद्धार्थ ने कहा, "तुम्हारा एक मेंढा (भेड) कही खोया है?" इन्द्रशर्मा ने विस्मय से कहा, "हां।" तब सिद्धार्थ ने कहा, 'तुम्हारा वह भेड अच्छंदक मारकर खा गया और उसकी कड़ियां चोर के वृक्ष के नीचे दक्षिण दिशा मे गाड दी है।" ग्रामवासी हाहाकार करने लगे और उन हड़ियों को देखने गये। वहां जाकर देला तो अखियां गडी हुई थी। अब और भी कौतुक से जानने की जिवासा से लोग वहां आये और दिल से पूष्ण इस बोंगी के बारे में आप और भी कुछ जानी है। तब सिलार्य ने कहा, अच्छदद होगी का और भी दुष्करन --- 129
SR No.010152
Book TitleApaschim Tirthankar Mahavira Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh Bikaner
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year2005
Total Pages259
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & Story
File Size10 MB
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