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________________ पाश्चात्य तथा भारत के मान्य विद्वानो ने भी इस बात को स्वीकार किया है। जहा तक तत्त्वज्ञान का सम्बन्ध है, हिन्दू धर्म मे उसकी वहुत सी शाखाएँ है। उच्च भूमिका पर हिन्दू तत्त्ववेत्तायो के बीच मतभेद है यह वात तो प्रसिद्ध ही है । हिन्दू तत्त्वज्ञान की भिन्न भिन्न गाखानो मे वेदान्त, नैयायिक, वैशेपिक, माल्य योग, मीमामक वैयाकरण और चार्वाक आदि भिन्न-भिन्न मत है (चार्वाक दर्शन हिन्दू धर्म की शाखा है या नहीं इस गरे मे विवाद चल रहा है) वेदान्त में अद्वैत और विशिष्टाहत प्रादि अनेक शाखाएं है। ___ इन सभी के आगे, केवल जैन तत्त्वज्ञान ही एक ऐसा तत्त्वनान है, जिसमे शाखाएं या उपमार्ग नही है। धर्म के आचरण के बारे मे जैन धर्म में श्वेतावर, दिगवर और स्थानकवासी शाखाएँ है ( इन्हे फिरके भी कहते हैं )। लेकिन तत्त्वज्ञान की भूमिका पर जैन धर्म की ये तीन शाखाएँ एक ही है, एक मत है। इधर-उधर छोटे-छोटे मतभेदो का होना असभव न होते हुए भी तत्त्वज्ञान की मूलभूत पीठिका पर कोई महत्वपूर्ण मतभेद नही है। यह एक ही ऐसी बात है जो जैन दर्शन की स्थिरता, घनता तथा मूलभूत दृढता को सावित करती है। जैन तीर्यकरो ने जो अबाधित सिद्धान्त जगत् के सामने रखे है वे आज भी ज्यो के त्यो मौजूद हैं। यदि ऐसा ही है और ऐमा होने में किसी प्रकार का सन्देह नही, तो फिर इसका कोई विगेप
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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