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________________ ६६ इस समय इन सातो विचारो से घिरे हुए मन को यदि मालूम हो कि इस जगत् मे सात भिन्न-भिन्न प्रकार से विचार करने की समझ देने वाली पद्धति से युक्त एक तत्वज्ञान भी मौजूद है तो उसे कितना ग्रानन्द होगा ? जेन दार्शनिको द्वारा ऐसे ही एक विशिष्ट तत्वज्ञान की भेट जगत् को अर्पित की गई है जो 'प्रनेकातवाद' के नाम से विख्यात है । बाजार से एक साधारण चीज खरीदते रामय हम यह जानते है कि किसी एक विशेष बात को ध्यान मे रखकर, जैसे कि उसके वाह्य सौदर्य पर ग्राकपित होकर खरीदेंगे तो ग्रवश्य ही ठगे जाएँगे । तत्वज्ञान के बारे में ठीक ऐसा ही विचार करना क्या श्रावश्यक नही ? जिस पर हमारे जीवन का, जीवन के विकास का, जिन्दगी के सुख और सन्तोप का श्राधार है उस तत्वज्ञान को चुनते समय हम भला सावधान कैसे रह सकते हैं ? भारत में, पूर्व के देशो मे तथा पाश्चात्य देशो मे धर्म ओर तत्वज्ञान के बारे मे जो परिस्थिति प्राज विद्यमान है उससे सभी परिचित है । पाश्चात्य देश भोतिकवादी है । भौतिक सुख और भौतिक विकास की ही वे सदैव इच्छा करने वाले हैं । ग्रुपने पंगवरो द्वारा बताये गये धर्म भी उनके पास है और उन्होने अपना एक तत्वज्ञान भी बनाया है । लेकिन, यह सब भौतिक और सासारिक सुखो के चारो ओर ही घूमता रहता है । उनके सभी श्राचरण, मुख्यत ऐहिक सुखो को ध्यान मे
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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