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________________ ५० पुद्गल और जीव के साथ ही जो अस्तिकाय शब्द जोड दिया गया है वह सहेतुक है । 'ग्रस्ति' अर्थात् प्रदेश और 'काय' अर्थात् समूह | इन पाँचो द्रव्यो के ग्रसस्य या अनन्त प्रदेश श्रीर समूह माने गये हैं । इसीलिये 'अस्तिकाय' शब्द जोडा गया है । जब कि काल द्रव्य का कोई प्रदेश न होने के कारण उसके साथ यह शब्द नही जोडा गया । (e) उपरोक्त छ द्रव्यो के आधार पर ही जैन- दार्शनिकों द्वारा मुक्ति-मार्ग मे उपयोगी नी तत्वो के ज्ञान का निरूपण किया गया है | ये नौ तत्त्व निम्नलिखित है। ( १ ) जीव - चैतन्यशाली चेतन । जीव द्रव्य के श्राधार पर इसका निरूपण किया गया है । (२) प्रजीव - चैतन्यरहित जड पदार्थं । इसमे धर्म, धर्म, आकाश, पुद्गल और काल का समावेश हो जाता है । (३) पुण्य - अच्छे और शुभ कर्म । (४) पाप - बुरे कर्म | ― (५) आस्रव - आत्मा के साथ कर्म का सम्वन्ध होने का मार्ग । (६) सवर - जिसके द्वारा कर्म बन्धन होने से रोक दिया जाय । श्रात्मा मे प्रवेश करते हुए कर्मों को रोकने की आत्मा द्वारा संचालित क्रिया । (७) निर्जरा - कर्म का क्षय । इस क्षय के दो प्रकार है - ( १ ) ' सकाम निर्जरा' अर्थात् तपश्चर्या आदि साधनो द्वारा कर्मो का क्षय किया जाता है । (२) 'अकाम निर्जरा'
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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