SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हैं। यह बात किसी एक ही क्षेत्र मे होती हो ऐसा भी नही है । सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, नैतिक, शैक्षणिक, भौतिक, आधिभौतिक, धार्मिक और दार्शनिक क्षेत्रो मे भी आज ऐसी ही परिस्थिति दिखलाई पड़ती है। कुछ लोग अपने वंशपरंपरागत अभिप्रायो का समर्थन करते रहते हैं, कुछ लोग 'वावावाक्य प्रमाण' मान कर चलने वाले है तो कुछ लोग ऐसे भी होते है जो हम भी कुछ है' की अहभाव-जनित वृत्तियाँ लिये हुए उछलकूद करते नजर आते है। 'तर्क' जिसका हमने आगे जिक्र किया है, वहुत-से स्थानो पर घोडे के रूप मे न पाकर गाडी के रूप में भी आता है । साधारणतया मनुष्य 'तर्क' को ही आगे रखकर कार्य करता है । यहाँ पर तर्क घोडे का काम करता है। स्वय आगे चलता हुअा विचार और कार्य को अपने पीछे खीचे चलता है। अपनी ही धुन मे मस्त रह कर तथा स्वार्थ और वासना से प्रेरित होकर भी मनुष्य कभी-कभी विना सोचे ही कार्य कर वैठता है । तत्पश्चात् उसने जो कुछ भी कार्य किया है उसे ही सही प्रमाणित करने के उद्देश्य से 'तर्क' का आधार लेता है। यहाँ निर्णय अथवा कार्य पहले होता है जब कि 'तर्क' वाद मे आता है । ऐसे मामलो मे 'तर्क' घोडे का रूप लेकर नही बल्कि गाडी का रूप लेकर आता है । जैसे घोडे के आगे गाडी लगाने से गाड़ी का चलना असंभव है, ठीक उसी तरह 'तर्क' जिसका प्रयोग वाद मे किया जाता है, वह सही रूप मे 'तर्क' नहीं बल्कि स्वार्थ-परायण दलीलबाजी ही होती है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy