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________________ ४०६ उपयोगिता की दृष्टि से क्रमश विचार करते चलेगे त्यो त्यों हमे नया प्रकाश मिलता जायगा । यह विचार करते करते हमारी विचारधारा नाशवत पर्यायो को छोड़ कर जो ध्रुव स्वरूप है, जो परिरणामी नित्य है, उस श्रात्मा तक अवश्य पहुँचेगी । इस तरह विचार करते करते, इस विश्व के इतिहास को खोजते खोजते, और अपने ग्रास पास- नित्य होती हुई घटनाओ का तात्त्विक विश्लेषण करते करते ग्राखिर हम इस नतीजे पर पहुँचेगे कि जीवन का अतिम ध्येय शरीर और सपत्ति नही चकि आत्मा श्रीर उसको मुक्ति है। बुद्धिमान् श्रीर ज्ञानी लोग ग्रपने श्रेय के लिये लघुदृष्टि को छोड कर दीर्घदृष्टि से काम देते है । जिस विचार या प्रायोजन के पीछे दीर्घ दृष्टि न हो उससे हमे शायद तात्कालिक लाभ हो सकता है, परन्तु दीर्घकाल तक वह हितकारी नही होता । श्रतएव जब भी हमे सपना ध्येय निश्चित करना हो तव 'ग्रात्मा की प्रतिम मुक्ति' - Final Emancipation of the soul - को केन्द्र मे रस कर ही हमे अपने जीवन का ग्रायोजन - Planning करना चाहिए । ग्रात्म- करयारण के साथ सवध रखने वाली एक महत्त्व की बात है, गमस्त विश्व का कल्याण करना श्रीर चाहना । त श्रात्मा के कल्याण के लिए, उसकी ग्रन्तिम मुक्ति के लिए, और उसे लक्ष्य में लेकर परकत्याण के लिए जो कोई मंत्र साधना की जाय उसका हेनु शुद्ध तथा शुभ माना जायगा, क्योंकि उसमे कोई भीतिक स्वार्थ या कामना नही होती । श्रव हम अपनी मत्रसाधना विषयक विचारधारा को
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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