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________________ ४०४ (Methodical) साधना करने की है। यह भी एक अद्भुत शक्ति है । तज्ज्ञ पुरुषो से मत्रसाधना की विधि भली भांति समझ लेने के पश्चात् उसका विना किसी भूल के पालन तथा अनुसरण किया जाय-मत्रसिद्धि के लिए यह चौथी महत्त्वपूर्ण शर्त है । इसमे एक खास ध्यान रखने की बात यह है कि पुस्तक के पृष्ठो पर लिखित मत्र अथवा किसी के पास से प्राप्त मत्र सुषुप्त दशा में होते है । जब तक योग्य गुरु से विधिपूर्वक मत्र ग्रहण न किया जाय, तब तक उसमे चैतन्य प्रकट नही होता, वह मत्र तब तक जड रहता है । मत्र है, इसलिए उसकी साधना फलदायक तो होती ही है। फिर भी गुरु के पास से ग्रहण करके 'चेतन' बनाने के बाद उसकी सिद्धि एव शक्ति अद्भुत बन जाती है। 'पाँचवी और अतिम शर्त मत्रसिद्धि के हेतु (उद्देश्य) से सबधित है। यहाँ स्वभावत यह प्रश्न पूछा जा सकता है कि 'हेतु की विशुद्धता या अयोग्यता के साथ मत्रसिद्धि का क्या सम्बन्ध है ? 'बुद्धियुक्त श्रद्धा, चित्त की पूर्ण एकाग्रता तथा दृढ कार्यक्षमता रखने वाला मनुष्य यदि विधिपूर्वक मत्र साधना करे तो उसमे उसके हेतु की शुद्धता-अशुद्धता से क्या सम्बन्ध है ?' ऐसा प्रश्न उठना स्वाभाविक है ? यह एक बहुत ही ध्यान में रखने की बात है। दुनिया का यह एक अबाधित तथा सनातन सिद्धान्त है कि उद्देश्य की पवित्रता से रहित कोई भी कार्य अन्तत सुखदायक-इष्टप्राप्ति करानेवाले कभी नही हो सकते । उद्देश्य या हेतु से मत्रसिद्धि का घनिष्ठ सबध है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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