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________________ कर बैठ जायें तो उस विषय का ज्ञान अधूरा रहता है। उसी तरह अन्य सत्य अग का लोप हो जाना है, जब कि अकेला 'नित्य है' अथवा 'अनित्य है' ऐमा मान कर चले तो लक्ष्य तक पहुँचा नहीं जा सकना । प्रत्येक वस्तु मे भिन्न-भिन्न परस्पर विरोधी गुण धर्म होते हैं। उनका सपूर्ण दर्जन न हो तो हमारी जानकारी अधूरी रहती है। जिस प्रकार वैज्ञानिक प्रयोगशालाप्रो मे सूक्ष्म-पृथक्करण (Aicroscopic Analysis) किया जाता है, उनो तरह जैन तत्त्ववेत्तायो ने वस्तु के सभी गुणधर्मो को खोल कर बताया है । इसमें कुछ भी कही ने बटोरा हुआ नहीं है, सब कुछ स्त्रतत्र है। इसके विपरीत अन्य मत मतान्नरो मे जो एक मार्गी वाते कही गई है, वे जैन तत्त्वज्ञान में से अनुकूलता के अनुसार एक एक बात पर डकर कही गई हो, ऐसी सभावना है। ___ वस्तु को 'नित्य' मान कर चलने मे उसके पर्यायो, अवस्थानो तथा परिणमनो की बात ही उड जाती है । इसके विपरीत, वस्तु को यदि 'अनित्य' मान कर चले तो जो मूलभूत द्रव्य है उसकी उपेक्षा हो जाती है। अत. जेन तत्त्वज्ञानियो द्वारा अपेक्षा-भेद से कही गई दानो वाते सगयात्मक नही, अपितु पूर्णतः निश्चयात्मक है। ___वस्तु के इन दोनो पहलुग्रो की पूरी पूरी समझ का व्यवहार मे एव आचरण मे विशेष महत्त्व है । जमीन के नीचे सब जगह पानी होते हुए भी एक स्थान पर कुंया खोदा जाता है और दूसरा जगह नहीं खोदा जाता, स्थल की अपेक्षा से यह वात पानी के होने तथा न होने का विधा-भाव सूचित
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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