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________________ 358 को बान करते : उनमें से हमारी अपनी बात को अर्थात् मानाने पानविन एनागिर नयाग भी बात को खोकर गन्ने नागारे निजी स्वार्थ की कोई यान गानी नबा परमाग को भूलकार गे जमा अनुहार विधानमा प्रनील तो बना व्यवहार कर लेते है। ____ और पर'-रिमाणे दोनो साप परम्पर जले न दोनो को ग पार अन्धा जीवन जीने ना विचार करना होगमार है। 'पर' को अलग करके 'स्व' दिनार नही हो सकता । इगो नर म्ब' को पृथक करके "पर' 1 पिचार भी एकानत हानिकारक है ।। पर बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए । उदाहरगाध -मुनीवन में पाने हए एन पधे मुसाफिर को हम सीधे गन्ने पर-राजमार्ग पहुँचाना चाहते है। गांव के बाहर मीधी गल पर ने जाकर उसके बाद कुछ मोट पार कर उमे राजमार्ग पर पहेनाना है। गांव में बाहर पहुंचने पर हमे विचार आता है कि अब गाँव से बाहर तो निकल पाये, आगे जाने तन गयो उठाएं ? यह सोचकर हम उन अये मुसाफिर से माहते है___"गाई, अब लकी के सहारे चले चलो । दाहिनी ओर दो जगह मोउ पाएँगे । इसके बाद दो जगह बाई ओर मोड मागे । इसके बाद एक बार दाहिनी ओर मुडने के बाद मुन्य गम्ना-राजमार्ग प्रा जाएगा । मीधे चले जाना।" उस अधे मुमाफिर को हम इतनी सूचना देते है। वह भला आदमी इतनी दूर तक पहुँचाने के लिये हमे धन्यवाद
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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