SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राथमिक जैन तत्त्वज्ञान के बारे मे कुछ बाते प्रारम्भ करने से पहले थोडी सी प्राथमिक वातो पर हम सोच-विचार कर ले । आज विश्व मे चारो घोर हमे जो कुछ भी नजर ग्राता है तथा उससे जो जानकारी प्राप्त होती है उसमे न जाने कितना वडा मतभेद हमे प्रतीत होता है ? क्या ये सभी मतभेद असत्य है ? भ्रम है ? एक व्यक्ति को जो कुछ भी दिखाई पडता है अथवा उसकी समझ मे जो कुछ श्राता है वही दूसरे व्यक्ति को न तो दिखाई पड़ता है और न तो उसकी समझ मे ही याता है । इसके द्वारा क्या हम यह समझ ले कि देखने वाले और न देखने वाले, समझने वाले और न समझने वाले सभी भूठे है । यदि इन लोगो के साथ वातचीत करने का हम अवसर प्राप्त कर ले तो हमे पता चलेगा कि हर व्यक्ति अपने आपको सत्यवादी तथा अन्य को झूठा मानता है । आज के युग मे राजनीति को ही प्रधान स्थान दिया गया है । हर विचारशील नेता यही स्वप्न देखा करते है कि सारे विश्व मे पूर्ण लोकशामन यथार्थ रूप में स्थापित हो, किन्तु इस एक ही 'वाद' के वारे मे उन लोगो की जो विचारधारा है उसमे कितना महान अन्तर है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy