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________________ ३५८ चाहिए कि विद्यमान साधन-सामग्री तथा गक्ति की सीमित उपलब्धता का आधार हमे कहाँ तक पहुँचा सकेगे। हमारे स्वप्नो की रचना इन सीमानो के भीतर होनी चाहिए। . अहमदाबाद से वम्बई जाने का टिकट पाँच रुपये के एक नोट मे नही मिलता । उसो तरह हमारे सजाये हुए स्वप्न भी आवश्यक सामग्री एव योग्यता के अभाव में सिद्ध नहीं होते। जव हम स्वप्नो की रचना करते हैं तव उनकी सिद्धि की कल्पना से हमे जो आनन्द होता है, वह भ्रान्ति सावित होने पर-अभीष्ट ध्येय की प्राप्ति न होने पर हमारा प्रारभ का आनद असीम दु ख मे परिणत हो जाता है। हमारे अवास्तविक स्वप्न ही हमारे असीम दुख के कारण बन जाते है। ___अतएव, जीवन का ध्येय निश्चित करते समय सर्व-प्रथम हमे अपनी योग्यता और अपने साधनो की सीमाओ का निश्चय कर लेना चाहिए। यदि हमारी अभिलापा और हमारी क्षमता मे मेल न बैठता हो तो उससे निराग होने की आवश्यकता नही है । ऐसी परिस्थिति मे हम 'दो वातें' अवश्य कर सकते हैं। __एक तो यह कि हम अपने ध्येय को अपनी क्षमतानुसार सीमित रखे, दूसरे अपनी योग्यता वढाने मे प्रयत्नशील हो । ज्यो ज्यो हमारी क्षमता में वृद्धि हो त्यो त्यो हम अपने ध्येय का भी विस्तार करते जायें। इस पद्धति का अवलम्बन कर यदि हम अपने जीवन का ध्येय तथा उस ध्येय तक पहुंचने का मार्ग निर्धारित करे तो जीवन एक झझट के समान नहीं वल्कि परम-यानन्द प्रमोदकारी नन्दनवन के समान बन जाएगा । हमारे जीवन को इस प्रकार की रचना मे 'स्याद्वाद'
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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