SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है । विशेषत संन्यस्त मार्ग ग्रहण करने के इच्छुक संसारी मित्रों को तो इस मार्ग पर कदम रखने के पहले आत्मवृत्तियो का पूरा पूरा विश्लेषण कर लेना चाहिए, और खुद को जो वैराग्य उत्पन्न हुआ है उसके कारणो का पूर्ण पृथक्करण करना चाहिए। इम जीवन को झझट मानने वालो की मान्यता मे अधिकतर तो ससार के झझट भरे झझावात नहीं, बल्कि मुसीवतो का मुकावला करने की अशक्ति, दुर्वलता आदि ही कारणभूत है । अपने कर्तव्य का पालन करने की अशक्ति, नित्यकर्म की उपासना के मार्ग मे अवरोध करने वाली विडवनाएँ और इन सव के प्रति मानसिक क्रोध हमें दूसरी दिगा के विचारो की ओर ले जाते हैं । इस प्रकार की विचारधाग मे पलायनवृत्ति escape tendency -होती है और यदि ऐसा ही है तो यह कोई सद्गुण नहीं है, यह आत्मा की दुर्वलता है। जब कि एक मात्र मानव भव मे ही सुलभ, सर्वथा निष्पाप जीवन जीने की इच्छा से ही यदि त्यागमार्ग की ओर अग्रसर हुअा जाय तो वह सच्ची जानदशा है। ___कई लोग जीवन मे प्राप्त करने की भौतिक सिद्धियो के विषय मे वडे बडे स्वप्न रखते हैं। वे इन स्वप्नो को सिद्ध नहीं कर सकते। जो चाहिये सो नहीं मिलता, जो मिलता है सो पसन्द नहीं आता। ऐसे लोगो को यदि जीवन झझट प्रतीत हो तो इसमे आश्चर्य ही क्या ? ____ जीवन मे सिद्धि प्राप्त करने के लिये सब से अधिक महत्त्व अपनी स्थिति, सयोग और शक्तिमर्यादा निश्चित करने का है । यह सब समझ लेने के बाद हमे यह निश्चित कर लेना
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy