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________________ ૨૨ यहाँ कर रहे है उसका एक सुन्दर जवाव भी इसमे है । फेनी एक करोडपति की अर्धाङ्गिनी है। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं है। फिर भी उमे इतने से ही सन्तोष नही है। ऐमी दावतो मे, दूसरो को चकाचौध करने मे तथा नीचा दिखाने मे वह अपना सन्लोप ढूंढती है। ल्युमी के पास धन-दौलत नहीं है । उसका पति एक मामूली मजूर है। परन्तु उसे इस बात का दुख नही है । नकली गहने पहन कर भो वह अानन्द प्राप्त कर लेती है। वह धनवान फ्रेनी से भी अधिक शान और रोव रख सकती है। इन सबके पीछे कौनसा तत्त्व काम करता है ? विचार करने पर प्रतोत हागा कि ल्युसी के ऐसे मस्त व्यवहार के मूल मे 'सन्तोप' है । वह अपने पास जो वस्तु नही है उसके खेद या तृप्णा मे दुखो होने के बदले, अपने पास जो कुछ है उसका अच्छे से अच्छा उपयोग करके मस्त और सन्तुष्ट रह सकती है । यह सन्तोप सुखी जीवन जीने का एक महत्त्वपूर्ण साधन है । मनुप्य को स्थिति और सयोग तो कर्मो के कारण मिलते हैं । केसे भी सयोग हो, पान दित रहना या उदास रहना, मस्त बने रहना या अपना रोना रोते रहना, बालमी बन कर बैठे रहना या उत्साहपूर्वक काम करना, प्राय मनुप्य के मन की स्थिति पर निर्भर है। मन की स्थिति को मस्त वनाने के लिये 'स्याद्वाद' को पर्याप्त जानकारी जैमा उपयोगी अन्य कोई उपाय नहीं है। समार को असार मानना, तथा साथ ही माय अपने चारो ओर जो सार है उसे ग्रहण करते रह कर मस्त जीवन जीना
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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