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________________ ३४२ कुछ विशेष छूट दी गई है जिसने ससारीमात्मा उगका निर्विघ्नतापूर्वक पालन कर सके । इसमे 'स' जीवो की हिगा का त्याग आदि पाँच स्थूल व्रत (अणुव्रत), तीन गुणन्नत तया चार शिक्षानत-यो कुल बारह व्रतो की प्रक्रिया है । इस मार्ग का अनुसरण करने वाले मसारी जन पापयोग से सर्वथा विमुग्व नहीं हो सकते, परन्तु अनत पापविमुग्वता और पुण्यसम्मुखता उन्हें अवश्य प्राप्त होती है । 'देगविरति' तथा 'मविरति' विषयक पूर्ण जानकारी के लिये श्री तीर्थकर परमात्मा के द्वारा प्रतिपादित श्रावकधर्म और माधु-धर्म का अध्ययन करना चाहिए। पचम गुणस्थानक पर पहुँचा हुआ अात्मा वीतरागता मे वहुत दूर होते हुए भी अगत वीतरागता का मानमिक अनुभव कर सकता है, और इस दृष्टि से यह आत्मा के विकासक्रम को एक सुभग अवस्था है । देशविरति धर्म का पालन करते करते प्रात्मा सर्वविरति के प्रति रुचिभान्-इच्छुक बनता है और एक विशिष्ट प्रकार की उत्थान-वाछा का अधिकारी वनता है । इस गुणस्थानक को उत्थान-सदन' कहना उचित ही होगा। इस पचम गुणस्थानक से आगे बढने का मार्ग 'सर्वविरति' धर्म की आराधना है। (६) प्रमत्त गुरणस्थानक - साधक आत्मा देश विरति धर्म की अराधना करते करते जब 'सर्वविरति'-महावत धारी साधुत्व-के स्थान पर पा पहुँचता है तब वह इस छठे गुणस्थानक पर आ गया होता है । वहाँ उसको सूक्ष्म हिंसा-असत्य आदि की भी विविध
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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