SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३२ हेतु है । कर्म के बन्धनो को नष्ट करने वाले ये सब 'सवर' कहलाते है | कर्म के पुद्गलो की रचना, उनका जुडना ( पूरण) तथा अलग होना ( गलन ) ग्रादि विषयक शास्त्र एक महान ग्राश्चर्यकारक तथा प्रति विशाल विषय है । कर्म के सिद्धान्त ( थ्योरी) को पूर्णतया समझने में अनन्त श्रानन्द तथा परम लाभ हो सकता है । इसकी विशेष जानकारी जैन साहित्य मे से ही प्राप्त होगी । ८) निर्जरा 'सवर' मे हमने कर्मवधन को रोकने की बात की है । 'वध' तत्त्व मे हमने ग्रात्मा के साथ कर्म के जुडने की बात की, और इस 'निर्जरा' मे बँधे हुए कर्मों को छोडने की बात आती है । इसमे स्वभाव के अनुसार छूटने वाले तथा योजना के अनुसार छोडे जाने वाले कर्मों की बात ग्राती है । जैसे कर्म के दो भेद सकाम कर्म और काम कर्म है, वैसे ही निर्जरा के भी दो भेद है - सकाम निर्जरा और काम निर्जरा | हम जिन कार्यो को जानबूझ कर हेतुपुरस्सर करते है, वे ' सकाम कर्म' कहे जाते है, और ग्रनायास होने वाले कर्म 'अकाम कर्म' कहलाते है । उसी तरह बँधे हुए कर्म अपनी कालावधि पूर्ण होने पर भुगते जाकर झड जाते हैसो काम निर्जरा है, और शुभ हेतुपूर्वक तप, जप, व्रत, नियम आदि व्यापारो के द्वारा कर्मो का क्षय किया जाता है सो 'सकाम निर्जरा' है । अग्रेजी का एक वाक्य है ' Prevention is better
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy