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________________ ३३१ कर्मबन्धन के मुख्य पांच प्रकार के कारण बताये गये है ~~- (१) मिथ्यात्व (२) अविरति (३) कपाय (४) प्रमाद तथा (५) योग । आत्मभावना का अभाव, मोस के विपय मे अश्रद्धा तथा सम्यग् ज्ञान-दर्शन-चारित्र के प्रति अरुचि को प्रात्मा की 'मि यात्वदगा' कहते हैं । पाप कर्मो मे प्रतिज्ञापूर्वक पीछे न हना 'अविरति' कहलाता है। क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेप आदि विकारो को 'कपाय' कहते है । आचरण करने योग्य वाचारो को भूल जाना अथवा शुभ कार्यो मे बालरय करना 'प्रमाद' कहलाता है तथा मन, वचन, काया से प्रवृत्ति करना 'योग' कहलाता है। ये सब समार के हेतु या कारण है। इनमे से मुक्त होने के लिए ग्रात्मा जब 'सबर' के द्वारा 'पावव' को बन्द कर देता है, तब आत्मा का विकासक्रम प्रारम्भ होता है । मच्ची ज्ञान दृष्टि से 'मिथ्यात्व दशा' का निवारण होता है। अच्छे. कर्म-धर्माचरण करने से तथा पापाचरण बन्द करने से 'अविरति' का निवारण होता है। रागद्वेष से छुटकारा पाने की प्रवृत्ति के द्वारा 'कपायो' से मुक्ति मिलती है। यात्मा के लक्ष्य के विषय मे एव कर्तव्याकर्तव्य के विषय मे सजग और सावधान रहने से 'प्रमाद' दूर होता है । मन-वचन-काया के शुभ परिणाम वाले उपयोग रूपी 'योग' से आत्मा के निर्मल परिणाम वाले स्वभाव को जाग्रत करके उसे मोक्षमार्ग की प्राप्ति मे प्रयत्नशील बनाया जा सकता है । ये सव मोक्ष के
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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