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________________ ३२६ ६ संवर ऊपर हमने श्रास्रव को कर्मपदुगलो के लिये श्रात्मा का प्रवेश द्वार कहा है । अव दरवाजा होता है तो उसे बन्द करने के लिये किवाड भी होते है । किवाड बन्द होने पर बाहर से भीतर जाने मे अटक या रुकावट होती है । श्रात्मा स्वयं अपने मन, वचन और काया के व्यापारो से कर्म के पुद्गलो को अपने भीतर आने का श्रामत्रण भेजता है । उसी तरह वह अपने शुभ एव निर्मल परिणाम वाले व्यापारो से कर्मपुद्गलो को अन्दर थाने से रोक भी सकता है । इस प्रकार जब कर्म पुद्गल किवाड बन्द देख कर अन्दर प्राते ग्रटक जाते है तव कर्म नही वधता । कर्म बधने से ग्रटकने की क्रिया को एव श्रात्मा के जिस व्यापार से कर्म के पुद्गल ग्राते हुए टक जाते है उसे भी दोनो को 'सवर' कहते है । के आज कल प्रौद्योगिक योजना मे भाखरा नागल बाघ जैसी सिचाई की जो योजनाएँ हुई है उनमे बहते हुए पानी को एक स्थान पर रोक कर उसका जमाव किया जाता है । उसे रोकने के लिए जो इमारती काम किया जाता है उसे डैम (Dam) अथवा वध कहते है। इस प्रकार इकट्ठी की हुई जलराशि को वध के दूसरी ओर जाने देने के लिए बन्ध के बीच-बीच मे सिमेट और लोहे के द्वार बनाये जाते है । उन्हे खोलने और बन्द करने के लिए जो किवाड होते है उन्हे ( Sluce gates ) स्लुइस गेटस् कहते है । इन दरवाजो को जितनी हद तक खोलना आवश्यक हो उतनी हद तक कम या ज्यादह - खोल कर इस प्रकार कम या ज्यादह पानी दूसरी ओर जाने दिया जाता है। Perm यदि हम आत्मा को कर्म के बन्धन-रूपी जलाशयो के
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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