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________________ २८७ लिए अथाह प्रयत्न हो रहे है । ग्राज जिन्हे सूक्ष्म कह सके ऐसे अणु-परमाणुओं तक विज्ञान पहुँचा है | ये सब रूपी ( माकार) पदार्थ ही है । इन रूपी पदार्थों मे जो अति सूक्ष्मसूक्ष्मातिसूक्ष्म पुद्गल है उन्हें प्रयोगात्मक ढंग से सिद्ध करने की बात कुछ संभव नही है । कर्म मे और मन के विचारो मे सूक्ष्मातिसूक्ष्म पुद्गल है, यह बात केवल शास्त्र - प्रमारण से नही, अनुभव प्रमाण से भी सिद्ध हो चुकी है । आधुनिक वैज्ञानिक यह मानकर कि 'पुद्गल है' उन्हे खोज निकालने का प्रयत्न करे अथवा 'पुद्गल नही हो है' ऐसा प्रमाणित करने के लिए प्रयत्न करे तो इससे मानव जाति को लाभ ही होगा, ऐसा मानना ग्रनुचित नही है । सामान्यतया ये पुद्गल अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण और वे इन्द्रियो के विषय नही वन सकते, यह देखते हुए, ऐसे प्रयास पूर्णतया फलीभूत होने की सभावना नही है, फिर भी ऐसी आशा रखना अनुचित न होगा कि यदि ग्राधुनिक वैज्ञानिक इसके लिए प्रयत्न करे तो उसमे से कुछ न कुछ प्राप्त तो होगा | विज्ञान ने गरोर के पुद्गलो को स्वीकार किया है तो फिर कर्म के पुद्गलो के विषय मे किया गया सशोधन विल्कुल निष्फल नही होगा, और कुछ नही तो अन्त मे ये सशोधन करने वाले श्रात्मिक प्रयोगशाला की ओर आकर्षित तो होगे ही। आज इस बात पर तो कोई मतभेद नही रहा है कि ससार की समस्त प्रवृत्तियो का, विचित्रताओं का, विपमताओ का और उन्नति-यवनति का एक महत्त्वपूर्ण कारण 'कर्म' है । कर्मशास्त्र पर अनेक बडे बड़े ग्रन्थ लिखे गये है । कई लोग तो कर्म के खेल पर इतने मुग्ध है कि ससार की सारी प्रवृत्तियो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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