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________________ १२ से कह रहे है मानो श्रापका तत्त्वज्ञान, Complete, absolute & all comprehensive - पूर्ण, स्वतन्त्र, सर्वग्राह्य और सर्वव्यापक हो । " बेशक, मेरा यही खयाल है |" मेने जवाब दिया | "अच्छा, तो फिर ग्राप मुझे यह बतायेगे कि आपके देश की - भारत की कुल श्रावादी कितनी है ?" उन्होने पूछा । "चालीस करोड ।" मैने जवाव दिया । " इसमे से आपके जैन धर्म में मानने वालो की सख्या कितनी है ?" उन्होने दूसरा प्रश्न पूछा । "वारह से लेकर पन्द्रह लाख के आस-पास ।' मैने जवाब दिया । मेरा जवाब सुनते ही वे भाई साहब खिलखिलाकर हंसने लगे । वाद मे धीमी ग्रावाज मे मुझसे तीसरा प्रश्न इस ढग से पूछा मानो कोई महान् विजय प्राप्त करके उनका मन सन्तुष्ट हुआ हो । "जिस धर्म और तत्त्वज्ञान के बारे मे आप ऐसी प्रभुत और बडी-बडी बाते कह रहे है, जिसे ग्राप विश्व के तत्त्वज्ञान का सबसे ऊँचा शिखर मानते है, उस धर्म मे मानने वाले और उसका अनुसरण करने वालो की संख्या भला इतनी कम क्यो है ? जवाब देने के बजाय मैने ही उनसे प्रश्न पूछा, "इस न्यूयार्क शहर की आबादी कितनी है ?"
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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