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________________ ११ पडा है और प्रोफेसर आइन्स्टाइन की खोज उसके आगे तो सिन्धु के सामने बिन्दु की भाँति नजर आती है, बात की ग्रोर किसी का ध्यान श्राकृष्ट क्यो नही होता मैंने पूछा । इस ? : ? 4 "क्या यह सापेक्षवाद जैन तत्त्वज्ञान मे भी है उसने पूछा । " जैन तत्त्वज्ञान की नीव हो सापेक्षवाद पर खडी की गई है" मैने जवाब दिया । "तो फिर आपके तत्त्वज्ञान का अध्ययन मुझे करना ही होगा" उसने कहा । "हमारा नही, अपना कहो। तुम जन्म से ही जैन हो, क्या इस बात को तुम भूल गये ?" कुछ शरमाते हुए (Thanks ) 'धन्यवाद' वस इतना ही कहकर उसने विदा ली । X X X इस लेखक की ग्रमरीका की यात्रा के बीच ऊपर बताई गई घटना के सह एक तीसरी घटना भी याद रखने योग्य है । इस बार एक अमरीकन मित्र के साथ कुछ चर्चा हुई । वे सज्जन यहूदी थे । धर्म और तत्वज्ञान के विपय मे उन्हे गहरी दिलचस्पी थी । कुछ चर्चा करने के बाद उन्होने मुझसे कहा. "जैन धर्म और जैन तत्त्वज्ञान सम्बन्धित ये सभी बाते आप इस ढग
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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