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________________ २६४ वह बहुत ही सोचने और समझने योग्य है। उसने कहा, ___ हा यह सच है, क्योकि मै यह बात अच्छी तरह जानता हूँ कि मै कुछ भी नही जानता। इस तरह जो मनुष्य यह बात अच्छी तरह जानता है कि 'मै अज्ञानी हूँ' उसके पास एक 'महा-ज्ञान' है, क्योकि इससे उसकी जिज्ञासा ज्ञान प्राप्त करने की इच्छाजीवित और ज्वलत बनी रहती है। परन्तु इस जिज्ञासा की तृप्ती के मार्ग मे एक बडी मुसीबत आ-उपस्थित होती है । इसका कारण है इस दुनिया मे मिथ्या ( झूठे ) ज्ञान का अस्तित्व । इसीलिये जिस मनुष्य को ज्ञान प्रात करने की इच्छा हो उसे सर्वप्रथम तो उसे यह ढूंढ निकालना चाहिए कि सच्चा (सम्यक्) ज्ञान क्या है । इसके लिए भी पहले ज्ञान चाहिए, पीछे क्रिया। क्रिया अर्थात् प्रयत्न । ___ सच्चे और भूठे ज्ञान की समझ को हम 'सरासर का विवेक' इस नाम से पहचान कर प्रारम्भ करे । यह समझ कहा से आ सकती है ? किस तरह आ सकती है । __ इसके लिए हमे सबसे पहले 'अहभाव' पर काबू प्राप्त करना होगा । जब तक हम इस 'लाग' से मुक्त नही होगे कि 'मै सव कुछ जानता हूँ, में जो जानता हूँ वही सच है, तब तक हम आगे नहीं बढ सकते। ___व्यर्थ ही नहीं कहा गया है कि 'गुरु विना ज्ञान नहीं ।' सबसे पहले शिष्य बनना पड़ता है। कोरी पट्टी लेकर स्कूल जाना होता है। आज तो, लगभग जहाँ देखे वहाँ सब 'गुरु ही नजर आते
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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