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________________ २६३ अब, यहाँ स्वभावत कुछ प्रश्न उपस्थित होते है। (१) ज्ञान-प्राप्ति के पीछे हमारा हेतु । (२) उम हेतु की पवित्रता, निर्दोषता और विशुद्धता । (३) जो ज्ञान ह्म प्राप्त करना चाहते है, क्या उससे मारा हेतु सिद्ध होगा। हम एक पवित्र, निर्दोष और विशुद्ध हेतु-त्र्येयनिश्चित करके उसके लिए आवश्यक ज्ञान प्राप्त करने का उद्यम शुरू करे, इसके पूर्व इस बात को स्पष्टतया समम लेना आवश्यक है कि 'वह ज्ञान हमे अपनी इच्छित वस्तु प्राप्त करने मे उपयोगी होगा या नहीं, क्योकि यदि हम यह बात निश्चित किये विना, ठीक तरह से समझे विना काम करने लग जाएँ तो हम हैरान ही होते रहेगे, जान के बदले भ्रम को ही लिए घूमा करेंगे। इसका कारण यह है कि 'अज्ञान' भी एक प्रकार का 'ज्ञान' है, "झूठा ज्ञान' भी एक प्रकार का 'जान' है। 'मै अज्ञान हूँ' यह बात जो मनुष्य जानता हो उसे तो आज के युग में एक 'महा ज्ञानो' समझना चाहिए। यह जानना भी कि 'म अन्नान हूँ' एक प्रकार का जान है। प्राचीन तत्त्ववेत्ता भुकरात (Socrates) के विषय मे एक बात प्रचलित है। कुछ लोगो ने यह आकाग वारणो मुनी कि 'इस युग में आज सब से अधिक चतुर तथा बुद्धिमान व्यक्ति सुकरात है।' यह मुन कर वे लोग मुकरात के पास गये। मुनी हुई आकाग वाणो उसे सुना कर उन्होने पूछा-'क्या यह सच है " • सुकरात ने कुछ देर सोच विचार कर जो उत्तर दिया
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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