SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३१ चित्र बना था। छठे भग में दूसरे और चौथे के सयोजन से हमे नया दृष्टिबिन्दु प्राप्त हुआ। अब इस सातवे भग मे हम पहले, दूसरे और चौथे-इन तीनो को साथ रख कर यह अतिम नया चित्र बनाते है। पाचवे और छठे भग की तरह यह सातवाँ कथन भी एक स्वतन्त्र परिस्थिति है। यह भी निर्णयात्मक और निश्चित कथन है। इसमे तीन अलग अलग वाते होते हुए भी तीनो मिल कर हमारे सामने एक सम्पूर्ण वात प्रस्तुत करतो हैं । पाँचवे और छठे भग को समझने के बाद इसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी। इस सातवी कसौटी में स्वचतुष्टय, परचतुष्टय और इन दोनो अपेक्षाओ को एक साथ प्रयुक्त करने से उपस्थित होने वाली 'अवक्तव्यता' ये तीनो एकत्रित होकर हमारे सामने एक नया ही विशिष्ट चित्र प्रस्तुत करती है। जिस प्रकार इससे पहले के छह भगो में प्रकट हुई बाते-वताये गये निर्णय-~~~ एक दूसरे से भिन्न है उसी तरह यह सातवॉ चित्र भी इन छहो से भिन्न है। इससे हमे और एक नई ही समझ प्राप्त होती है। यह समझ पिछली छह प्रकार की समझ से भिन्न और विशिष्ट है। ____ है, नही है और शब्दो मे उसका वर्णन नहीं हो सकता' इस वाक्य मे भी निश्चितता का सूचक 'एद' शब्द है ही।' फिर दूसरी अपेक्षायो के द्वारा जो अन्य स्वरूप उस वस्तु मे निश्चित तौर पर हैं, उनकी स्वीकृति सूचित करने वाला 'स्यात्' शब्द भी इसमे है। इस दृष्टि से यह सातवी कसौटी हमारे सामने एक सातवाँ स्पष्ट और निश्चित चित्र पेश करती है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy