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________________ २२५ में पूछने पर हमे ऐमा जवाब मिलता है-'Cant say anything कुछ भी नहीं कहा जा सकता।' यह कोई अस्पष्ट जवाव नही है । यह परिस्थिति का सच्चा और स्पष्ट मूत्याकान है। इसी तरह से घडा 'अवक्तव्य' है ऐसा कहने में भी एक निश्चित और स्पष्ट अर्थ है । 'हे और नहीं है' इस वाक्य मे से 'और' गब्द को हटाकर हम परिस्थिति का वर्णन नहीं कर सकते। यहाँ भी वही 'स्यात्' शब्द है । यह शब्द इस अभिप्राय के अतिरिक्त अन्य सापेक्ष सभावनाओं का उल्लेख करते हुए भी मूल कथन की निश्चितता को सुरक्षित रखता है । 'एक' शब्द कथन को सपूर्ण निश्चितता प्रदान करता है । एक ही वस्तु को 'है' 'नही है' तथा 'है और नहीं है। इन तीनो दृष्टियो से एक साथ प्रस्तुत करने मे जो कठिनाई है उसे यह चौथा भग एक शब्द 'प्रवक्तव्य' के द्वारा दूर करता है। इस बात को इस ढग से प्रस्तुत करने मे हम असत्य कथन करने से बच जाते है । इसके उपरात एक सत्य कथन करने वाले के रूप मे हम सम्मान भी प्राप्त कर लेते है । इस प्रकार यह चौथा भग हमारे सामने एक नया दृष्टिबिन्दु प्रस्तुत करता है-वस्तु को समझने की एक नई दृष्टि देता है । वेदान्तमत मे नेति नेति (न+इति)का जो विधान है, वह सप्तभगी के इस चौथे भग को समझने के लिए एक सामान्य दृष्टान्त का काम देता है। वर्णन करने के असामर्थ्य मे से 'नेति नेति' (ऐसा नहीं, ऐसा नही)शब्द स्वत प्रकट हुए है। ये शब्द बोलने वाला ब्रह्म को समझने की अपनी शक्ति की दृष्टि से ऐसा शब्दप्रयोग करता है । परन्तु वह ऐसा नही
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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