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________________ २२४ पहले तीन भगो मे घडे के विषय में क्रमश कथन द्याया । एक मे हमने घडे का ग्रस्तित्व स्वीकार किया । दूसरे मे उसका 'प्रभाव - न होना' स्वीकार किया। तीसरे मे ग्रस्तित्व और प्रभाव' विषयक एक निश्चित कथन हमने मजूर किया । तीसरे भग मे वस्तु के दोनो धर्मो का क्रमण कथन है । परन्तु यदि कोई कहे कि दोनो का युगपद् कथन करो तो इमे कहना पडेगा कि 'ऐसे तो वह वक्तव्य है ।' यदि कोई कहे कि 'है प्रोर नही है' यो नही बल्कि एक ही स्पष्ट बात इस चौथे भग से करो, तो हम कहेंगे कि एक ही साथ 'हे श्रीर नही है' यह भाव प्रकट करने वाला कोई 'एक' शब्द भाषा मे नही है, इसलिये यह वात 'वक्तव्य' है, इसका वर्णन नही किया जा सकता । जव हम किसी बीमार श्रादमी का हाल जानने के लिये जाते है तो वह सामान्यतया उत्तर देता है - 'ठीक है, अच्छा है ।' परन्तु 'ठीक' शोर 'अच्छा' ये दोनो शब्द सापेक्ष है । 'कल से अच्छा पर बीमारी शुरु होने से पहले के स्वास्थ्य की अपेक्षा 'खराब' ये दोनो अर्थ उस उत्तर मे निहित है । जब हम उससे कहे कि भाई, तबीयत का ठीक ठीक स्पष्ट वर्णन करो' तव वह क्या जवाब देगा ? एक ही जवाब दे सकता है कि 'कुछ कहा नही जा सकता ।' यह जवाब ग्रस्पष्ट नही है क्योकि 'ऐसा या वेसा कुछ कह सकने की स्थिति मे नही हूँ' इस वाक्य मे भी एक स्पष्ट अर्थ है ही । युद्ध के मैदान मे, वैज्ञानिक प्रयोगशालाओ मे तथा न्यायालयो मे ऐसी परिस्थिति कई बार देखने जानने को मिलती है। वहाँ चलती हुई प्रवृत्तियो के परिणाम के विषय
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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