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________________ [ १८७ ] स्वीकार करता है। व्यवहार नय शास्त्रीय और तात्त्विक सामान्य या विशेप की परवाह किये विना' लोकव्यवहार मे उपयुक्त विशेष अर्थ को ही स्वीकार करता है-बताता है, जब कि ऋजुसूत्र केवल वर्तमान क्षण को हो स्वीकार करता है, वर्तमान क्रिया के उपयोगी अर्थ का ही निरूपण करता है । इस प्रकार ये चार अर्थनय है। शब्द नय रूढि से शब्दो की प्रवृत्ति को स्वीकार करता है, जव कि समभिरुढ नय व्याख्या से शब्दो की प्रवृत्ति को ओर हमारा ध्यान खीचता है । और अतिम-एवभूत नय क्रियाशील वर्तमान Active present को स्वीकार करता है। जब वस्तु क्रियाशील- In action हो तभी उसे उस वस्तु के रूप में स्वीकार करता है। इस प्रकार ये तीन नय शब्दप्रधान नय हैं। __ये सब तो विचारमूलक तत्त्वज्ञान की बाते हुई । परन्तु हमे जव धर्ममूलक अर्थात् धर्म के आचरण से सम्बन्धित कार्यमूलक वातो का विचार करना हो तब विशिष्ट-Specific हेतु के लिए जैन दार्शनिको ने दो नय प्रस्तुत किये हैं । वे दो नय है १) व्यवहार नय २) निश्चय नय यहाँ निश्चय का एक अर्थ 'साध्य' होता है । व्यवहार का अर्थ यहाँ 'साधन' माना गया है। जिन साधनो से जो साध्य सिद्ध होता है वे साधन व्यवहार के क्षेत्र मे आते है। सिद्ध होने वाला जो 'साध्य' है वह निश्चय के क्षेत्र मे आता है। उदाहरणार्थ ध्यान की क्रिया से आत्मा की शक्ति का
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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