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________________ १७३ वह स्वय चोल रहा है, इसलिए मर नही गया है । फिर भी वह कहता है " मर गया । " किसी को व्यापार मे भारी नुकमान होने पर उसके लिये ऐसे शब्द प्रयोग होते है, "साफ हो गया, खत्म हो गया, मर गया ।' दरअसल तो नुकसान के रुपये चुकाने पर ही वह 'साफ या खत्म हो गया' कहा जा सकेगा । और रुपये चुकाएगा तब भी शब्दों के यथार्थ अर्थ ( सही माने ) मे तो वह साफ - विलकुल साफ - गायद ही होगा । उनी तरह किसी मकान की दीवार या छत गिर जाने पर भी उसके लिये 'मकान गिर गया' ऐसा कहा जाता है । यहाँ भविष्य में होने वाली, या होने की सभावना वाली वाते वर्तमान मे ग्राशिक रूप से कही गई है । ऐसी बातो के व्यावहारिक स्वीकार को 'ग्रश नैगम' कहते है | इसी तरह जब हम कहते हैं कि, "ग्ररिहत, विदेहमुक्त अथवा सिद्ध है ।" तव यह कथन वर्तमान मे कहा जाता है फिर भी इसमे भूतकाल एवं भविष्य काल का समावेश हो जाता है । (इ) कोई कार्य प्रारंभ किया गया हो, परन्तु पूरा न हुया हो तब भी हम 'यह काम पूरा हो गया' इस अर्थ की बात कभी कभी कहते है । ऐसा कई बार होता है । जैसे—- रसोई बनाने का प्रारम्भ करते समय जब हम कहते है कि ग्राम घीये का शाक बनाया है' तव शाक तैयार नही होता, अभी तो अगीठी पर होता है फिर भी 'शाक बनाया है' ऐसी वर्तमान सूचक बात हम कहते है । इसमे जो वस्तु प्रभो नही वनी, उसे बन गई कहने मे भूतकाल पर भविष्यकाल का आरोपण करके ,
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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