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________________ १५३ भाषिक शब्द है-अवग्रह, ईहा, अपाय, और धारणा । इन्हे हम अस्पष्ट भास, ईषत् दर्शन, निर्णय और स्मरणाकन भी कह सकते है। दूर से कोई वस्तु दिखाई दे और हमे ऐसा लगे कि कुछ है, यह (अवग्रह) अस्पष्ट भास है। नजदीक आने पर हमे समझ मे आने लगता है कि वह क्या है ? यह (ईहा) ईषत् दर्शन है। समझ में आने पर वह 'अमुक ही' है ऐसा निश्चित होना (अपाय) निर्णय है । वाद मे हमारे मन-प्रदेश मे उसका इस प्रकार अकित हो जाना कि कभी भी वह हमे याद आ सके, (धारणा) स्मरणाकन है। उदाहरणार्थ-मान लीजिए कि दूर से कोई मनुष्य जैसी आकृति दिखाई देती है-यह अस्पष्ट भास या 'अवग्रह' है। नज़दीक आने पर मालूम होने लगता है कि वह पुरुप है यह ईषत् दर्शन अथवा 'ईहा' है । इसके बाद 'वह पुरुष ही है, स्त्री नही है' ऐसा निश्चय होना निर्णय अथवा 'अपाय' है। और बाद मे हमे वह पुरुष फिर कभी मिले तब हम उसे पहचान सके, इस प्रकार से हमारे मन प्रदेश मे भकित हो जाना स्मरण अथवा 'धारणा' है । यहाँ एक बात ध्यान मे रखनी चाहिए कि साव्यवहारिक प्रत्यक्ष के अन्तर्गत धारणा नामक भेद के अनुसार वर्तमान मे देखे हुए पुरुष का चित्र हमारे मन मे अकित हो जाता है तब तक वह प्रत्यक्ष प्रमाण का भेद है। परन्तु भविष्य मे जब हम उसे देखने पर स्मरण से पहचान लेते है, उस समय उस प्रकार पहचानना परोक्ष प्रमारण के अन्तर्गत है।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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