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________________ विभाग है । इन सब को क्रमश निम्नानुसार प्रस्तुत किया जाता है - (१) प्रत्यक्ष प्रमाण । (२) अनुमान प्रमाण। (३) उपमान प्रमाण। (४) आगम (शास्त्र) प्रमाण । अब हम इन चारो प्रमारणो को क्रमश समझने का प्रयत्न करेगे। प्रत्यक्ष प्रमाण -आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा-ये हमारी पाँच इन्द्रियाँ हैं । इन पांच इन्द्रियो तथा मन के द्वारा हमे वस्तु का बोध होता है, वस्तु को हम समझ सकते है। इसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। उदाहरणार्थ, यदि हमारे हाथ में एक फूल आवे तो उसके रूप, गध, रग, आकार ग्रादि का हमे जो ज्ञान होता है वह प्रत्यक्ष प्रमाण है । वह फूल हमारे हाथ मे न भी हो, हम उसे देख न सके, ऐसे कही नजदीक रखा हो, तो भी हम उसकी गध का अनुभव कर सकते है। इस प्रकार नाक से गध का जो ज्ञान होता है वह भी प्रत्यक्ष प्रमाण है। यहाँ, हमारी इन्द्रियो के साथ वस्तुओ का जो सयोग होता है उसे हम प्रत्यक्ष अनुभव कहते है। जीभ के साथ स्वाद का, नाक के साथ गध का, कान के साथ आवाज का जब सवध होता है, तब प्रत्येक वार हमे उसका ज्ञान होता है। ___ इन्द्रियो और मन के द्वारा हमे जो ज्ञान होता है उसे जैन दार्शनिको ने 'साव्यवहारिक प्रत्यक्ष' नाम दिया है । इसके भी चार भेद है । इन चार भेदो के लिये जैन दर्शन मे चार पारि
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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