SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४५ सम्मिलित पुरुषार्थं या उद्यम - इस प्रकार कर्म, उद्यम तथा स्वभाव' ये तीन कारण एकत्रित होने पर कार्य का प्रारंभ होता है । फिर भी काल परिपक्व हुए बिना मिल मे से कपडा बन कर बाहर नही आता । मिल के लिये मकान बनाने मे, यन्त्र - सामग्री आदि प्राप्त कर उसे स्थापित करने मे तथा अनेक प्रकार की विधियो ( Process) को पार करके कपडा तैयार करने मे समय तो अवश्य लगता है । Capital, Planning, Construction, Erection, Administration, Execu tion, Processing, Finishing, पूँजी, नियोजन, इमारत, यत्रो की स्थापना, व्यवस्था, कार्यसचालन, विधि, अन्तिम पूर्णतायदि कितनी सारी बातो की आवश्यकता होती है ? तदुपरान्त इन सब में निपुणता होनी चाहिये । यह सब होते हुए भी, सव प्रकार की सुविधाओ के बावजूद, यदि भवितव्यता का साथ न मिले तो बना बनाया खेल विगड जाता है ।' इस प्रकार पाँचो कारगो का सहयोग जब तक नही मिलता तब तक कपास मे से कपडा, घास मे से दूध, गेहूँ मे से रोटी, धान मे से भात, गन्ने मे मे शक्कर, या खान के सुवर्ण-युक्त पत्थर मे से अलकार नही बनते । इसी प्रकार जडकार्य हो चाहे चेतनकार्य, किसी भी कार्य के पीछे पाँचो कारण अवश्य होते है । कोई भी एक कारण अकेले ही, कोई कार्य पूर्ण नही कर सकता । इतना जरूर है कि कोई भी एक कारण प्रधानत मुख्य भाग लेता हुग्रा दिखाई दे सकता है, परन्तु जब तक ये पाँचो इकट्ठे नही होते तब तक कोई कार्य सिद्ध नही हो सकता । यहाँ एक बात भलीभाँति
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy