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________________ १३९ धर्म और उद्यम से ही मोक्ष भो मिलता है। विद्या और कला भी उद्यम ने ही सिद्ध होती है।' इन उद्यमवादियो के कथानुसार 'इस जगत में केवल उद्यम ही एक मात्र कारण है, और ममार के सभी कार्य केवल उद्यम के वगवर्ती है। उनके मतानुसार, 'उद्यम को छोडकर बाकी सभी कारण निकम्मे, निरर्थक,अर्थहीन एच नपु मक है।' इस तरह अब हमने इन पात्र कारणों को अलग अलग त्प में और प्रत्येक कार्य के लिए केवल एक ही कारण को मानने वाले महागयो की युक्तियो को जान लिया। तदुपरात, एक ही कारणा को मानने वालो के अतिरिक्त ऐसे भी वर्ग है जो पांच कारणो मे मे दो दो के युग्मो को मानते हैं। कोई प्रारब्ध और पुस्पार्य के मेल को कार्य का कारण मानते हैं, तो कोई उद्यम के माय नियति को जोडने हैं, दूनरे ऐसे भी है जो प्रारब्ध, कर्म और भवितव्यता के त्रिवेणीनगम में विश्वास रखते हैं। परन्तु इस विषय में पर्याप्त जांच करके, पर्याप्त प्रमाण प्राप्त करके सभी प्राधारो तथा लक्षणो को परीक्षा करके, तथा सर्वन भगवतो के कथन को साथ लेकर जैन दार्गनिको ने इन पांचो कारणो को एक समूह मे प्रस्तुत किया है। उनका कथन है कि, "सामान्यतया, जब तक ये पांचो कारण एकत्रित नहीं होते तब तक कोई कार्य नहीं होता।" उनकी बान सर्वथा नत्य तथा भलीभांति समझने योग्य है । अब हम जैन तत्त्ववेत्ताओ का अभिप्राय अत्यंन ध्यान पूर्वक देखेंगे। पांच कारणवाद-हम पहले देख चुके हैं कि प्रत्येक वस्तु के गुणधर्म की और कार्यकारणभाव की परीक्षा करने की
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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