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________________ १२२ यह अर्थ समझना चाहिए। विवेक बुद्धि का उपयोग यहाँ भी करना चाहिए। तीसरा आधार 'काल' है। यहाँ काल का अर्थ है 'जिस वस्तु का, वस्तु के द्रव्य काहम विचार करते हो उसके उस अस्तित्व का समय । जव वस्तु मे परिवर्तन होता है, तब जिस समय यह परिणमन होता है वह उसका 'काल-समय' है । द्रव्य के तौर पर काल स्वय एक अलग पदार्थ है । जिस वस्तु का जिस समय परिणमन होता है वह समय उस वस्तु के परिणमन का समय है । एक समय पर अनेक वस्तुओ का परिवर्तन हो रहा होता है, परन्तु ऐमा नहीं कहा जा सकता कि इन सव वस्तुप्रो का परिणमन-परिवर्तन-एक ही काल मे हुआ । प्रत्येक वस्तु का परिवर्तन जिस समय हुआ वह समय, उस वस्तु के परिणमन का अपना समय है, अपना काल है-यो समझना चाहिए । ___ यह बात कुछ अटपटी मालूम होगी। परन्तु यहाँ जव हम काल या समय के विषय मे कहते है तव काल या समय की खुद की बात नहीं करते, बल्कि हमे जिस जिस वस्तु से सवधित 'काल का-समय का' विचार करना है उस वस्तु के सदर्भ मे कालका उल्लेख करते है। घडी की सुई की दृष्टिसे काल-समय एक ही है, फिर भी वह समय घडी की सुइयो का है, अन्य वस्तुओ के परिवर्तन का नहीं । इस दृष्टि से जव हम काल की अपेक्षा के विषय मे कहते हैं तव जिस वस्तु का हम विचार करते है, उस वस्तु के परिणमन के समय की अर्थात् उस वस्तु के अपने समय की बात की जाती है ।
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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