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________________ १२१ ( शुद्ध द्रव्य) है, जब कि पक्षी भो एक द्रव्य ( संगठित द्रव्य ) है | यहा पर पक्षी जिस प्रदेश मे है वह पक्षी का क्षेत्र है और आकाश जिस प्रदेश मे है, वह ग्राकाश का क्षेत्र है । यह समझ लेने पर स्पष्ट हो जाएगा कि ग्राकाश और पक्षीदोनो द्रव्य अपने अपने क्षेत्र मे अलग अलग है । इसी तरह प्रकाश मे जो सूर्य, चन्द्र, तारे यादि दिखाई देते है उन सबका क्षेत्र पृथक् पृथक् है, और ग्राकाश का क्षेत्र भी इन सब के क्षेत्र से भिन्न है | हम क्षेत्र की अपेक्षा की - क्षेत्र के ग्राधार की - बात करे तब इस बात को बराबर ध्यान मे रखना चाहिए । उदाहरण के तौर पर जब कोई कहता है कि 'मै कुर्सी पर बैठा हूँ' नव उसके बैठने का क्षेत्र और स्वय कुर्सी जहाँ है वहाँ उसका क्षेत्र, ऐसे दोनो क्षेत्र अलग अलग है, एक नही । इस विषय को समझने के लिये कुछ सीधे सादे उदाहरण लेते है ---- १) लिखते समय मेरे हाथ मे रही हुई पेन्सिल का क्षेत्र मेरा हाथ है । २) जिस पर लिखा जाता है उस कागज का उस वक्त का क्षेत्र टेवल है ( टेवल पर ग्रमुक भाग ) । ३) भारत के प्रधान मंत्री का कार्यक्षेत्र भारत देश है । ४) व्याख्यान देने वाले वक्ता का उस समय का क्षेत्र व्याख्यानमच ग्रथवा व्याख्यानहॉल है । ५ ) बादलो का क्षेत्र प्रकाश है ( प्रकाश के जितने विस्तार में वे हो) तात्पर्य यह है कि 'क्षेत्र की अपेक्षा से' जब विचार किया जाय तव 'प्रत्येक वस्तु के द्रव्य का क्षेत्र - उसके रहने का स्थान'
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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