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________________ कहलाती है । इस बात को बड़े गौर से और पूर्णतया समझ लेना चाहिये । ___ एक ही मनुष्य दयालु, उदार, मधुर भाषी, परोपकारी, क्षमावान, चारित्र्यशील, धैर्यवान, हिम्मतवाज, शातमूर्ति, धर्मपरायण और दानशील है। इस तरह उसमे बहुत से गुण है । उसके प्रत्येक अलग-अलग गुण का अलग अलग दर्शन होने के कारण हम उसके सम्बन्ध मे अपनी राय बना सकते है। लेकिन इसी कारण हम इस राय को 'अनेकातात्मक' नही कह सकते । प्रत्येक गुरण के सम्बन्ध मे सोच विचार करते समय, दृष्टि और बुद्धि दोनो उस गुरण तक ही मर्यादित रहने के कारण, इन सभी गुणो को एक साथ लेते समय भी वह निर्णय एकातिक ही रहता है। अनेकात दृष्टि द्वारा ही हम यह सिद्ध कर सकते है कि इम मनुष्य के जीवन मे इन सभी गुणो के विपरीत अवगुण भी मौजूद है तथा गुणो और अवगुणो के परस्पर विरोधी धर्मो का कथन कर सकते हैं । ___ इससे यह स्पष्ट है कि यदि एक वस्तु मे परस्पर विरोधो वाते मौजूद है यह तथ्य सावित करना हो, खोज निकालना हो ग समझना हो उस समय ही अनेकातवाद की अावश्यकता उत्पन्न होती है । अधिक स्पष्टतया यह फलित होता है कि अनेकातवाद का आश्रय लिये बिना हम सच्चा निर्णय कर ही नही सकते । इतना सक्षिप्त विवरण देने के बाद अनेकातवाद की एक सक्षिप्त व्याख्या यदि करनी हो तो हम कहेंगे कि एक ही वस्तु के भीतर रहे हुए परस्पर विरोधी गुणवर्मों और तत्त्वो को प्रकट करके जो हमारे सामने प्रस्तुत कर सके उसे । अनेकांतवाद' नाम से पहचाना जाता है। इसके
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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