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________________ अभी और कुछ विगेप स्पष्टीकरण करेगे। 'सत्य' और 'असत्य' के स्थान पर हम 'सत्व' और 'अमत्व' ऐसे दो गब्दो का प्रयोग करे। इन दोनो मे परस्पर विरोधी गुणधर्म हैं। फिर भी, यहा पर हम उन चारो अपेक्षाप्रो को, चतुष्टय को, ले आकर रखेगे तो ज्ञात होगा कि 'स्वद्रव्य' क्षेत्र काल भाव की दृष्टि से जो सत्व है, वही सत्व, 'पर' द्रव्य क्षेत्र काल भाव की दृष्टि से असत्व है। इस द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव की अपेक्षा मे 'स्व' क्या और 'पर' क्या ? यह तो कोई नई बात हुई,ठीक है न ? आगे चलकर हम इस पर चर्चा करेंगे । इसलिये इस विपय को छोडकर हम आगे बढे । लेकिन, हमारे मन मे किसी प्रकार का सन्देह न रह जाय इसलिये हम यहाँ पर एक छोटी सी-ज्ञान की बात कर ले । जहाँ 'स्वय' है वह 'स्व' और जहाँ 'स्वय' नही वह 'पर'। आगे इस विषय मे हम चर्चा शुरू करे तब तक यदि इस पर कुछ सोच विचार कर रखे तो आगे चलकर इस विषय को समझने में आसानी होगी। ___ इस तरह. असत्व और सत्व, अनित्यत्व और नित्यत्व, अनेकत्व और एकत्व आदि परस्पर विरोधी गुण धर्म वाले विपयो को तथा वस्तुप्रो को यदि हम विविध पहलुग्रो से देखे तो हम बडी आसानी से और अत्यधिक सरल ढग से इस बात को समझ पाएंगे कि यह सब कुछ एकातात्मक नही बल्कि अनेकातात्मक है। इस प्रकरण को समाप्त करने से पहले एक बहुत जरूरी बात कहनी है । एक ही वस्तु मे अनेक प्रकार के गुणधर्म होते है इस बात को जैनेतर तत्त्वज्ञानियो ने भी स्वीकार किया
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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