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________________ ६६ जैन दार्शनिको ने द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की चार अपेक्षानो का वर्णन किया है । यदि इन चारो अपेक्षाओ को ध्यान मे रखकर हम इन बातो पर सोच-विचार करेंगे तो सव कुछ ठीक तरह समझ पाएंगे। इन चारो अपेक्षाग्रो के वारे मे, एक स्वतत्र प्रकरण मे, मागे हम चर्चा करने वाले हैं। इसलिये, यहाँ पर हमने उनका इतना ही उल्लेख किया है दृष्टि एव विचारशक्ति को शुद्ध करने के लिये ये चारो बाते अत्यत उपयोगी है। ___ यदि हम प्रत्येक विषय की जाँच अनेकातवाद की कसौटी पर करेंगे तो न केवल हमे उस वस्तु के स्पष्ट दर्शन होगे बत्कि इसके अतिरिक्त एक दूसरा बहुत-बडा लाभ भी हमे होगा। हमे अनेकातदृष्टि प्राप्त होते ही हमारे जीवन मे 'समभाव' का अपने आप उद्भन होगा । क्या यह कोई मामूली लाभ है ? ___अरे, यह तो, धरती पर स्वर्ग उतारने की बात है । यहाँ पर हम एक रमणभाई नाम के सज्जन की वात करेगे । अनेकात दृष्टि को उन्होने ठीक तरह समझा है। उनकी पत्नी रमा वहन कम पढी लिखी है। उनकी पुत्री रम्यवाला ग्रेजुएट है । रमा वहन मे उम्र का अनुभव है, रम्यवाला मे यौवन की उच्छ खलता है। वात-बात मे ये माँ-बेटी नापस मे झगडती रहती है । कभी-कभी यह झगडा इतना उग्र रूप धारण कर लेता है कि उनके पडौसी श्री पोपटलाल का दिमाग भी वेकाबू बन जाता है और वे अपनी पत्नी पार्वती वहन से कहते है "यदि कही मेरी पत्नी या वेटी का भी ऐसा स्वभाव होता तो
SR No.010147
Book TitleAnekant va Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandulal C Shah
PublisherJain Marg Aradhak Samiti Belgaon
Publication Year1963
Total Pages437
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size13 MB
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